Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 356
________________ पदणिक्खेवे सामित्तं ३४७ संजदासंज० । अपचक्खाण०४ तिण्णि वि ओषं । णवरि हाणी संजमासंजमं पडिवजंतस्स । चदुआउ -तिण्णिगदि-चदुजा०-छस्संठा०-छस्संघ०-तिण्णिआणु०-दोविहा०थावरादि४-मज्झिल्लयुगलाणि तिणि उच्चा० ज० वड्ढी क० १ अण्ण० मिच्छादि० परिय०मज्झिम० अणंतभागेण तिण्णि वि० ।तिरिक्ख०-तिरिक्खाणु०'-णीचा० ज० वड्ढी क० ? अण्ण० बादरतेउ०-वाउ०जीवस्स सव्वाहि प० अणंतभागेण तिण्णि वि । पंचिं०वेउव्वि०-तेजा०-क०-वेउव्वि० अंगो०-पसत्थ०४-अगु०३-तस०४-णिमि० ज० वड्ढी क० ? अण्ण. पंचिं० सण्णि. मिच्छा. सागा० सव्वसंकि० अणंतभागेण वड्डिदण वड्ढी हाइदूण हाणी एक्कदर० अवहाणं । ओरालि०-ओरालि०अंगो०-आदाउज्जो० ज० वड्ढी क० ? अण्ण० पंचिं० सण्णि० मिच्छा० सागा० तप्पा०संकि० अणंतभागेण वड्डिदूण वड्ढी हाइदूण हाणी एकद० अवहाणं । एवं पंचिंतिरिक्ख०३ । णवरि तिरिक्ख०-तिरिक्खाणु०-णीचा० णिरयभंगो। ५८९. पंचिंतिरि०अपज. पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ०-सोलसक०-पंचणोक०अप्पसत्थ०४-उप०-पंचंत० ज० वड्ढी क० १ अण्ण० सण्णिस्स सव्वविसु० अणंतजघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थानका स्वामी कौन है ? अन्यतर संयतासंयत जीव उक्त तीनों पदोंका स्वामी है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके तीनों ही पदोंका भङ्ग ओघके समान है । इतनी विशेषता है कि संयमासंयमको प्राप्त होनेवाला जीव जघन्य हानिका स्वामी है। चार आयु, तीन गति, चार जाति, छह संस्थान, छह संहनन, तीन आनुपूर्वी, दो विहायो गति, स्थावर आदि चार, मध्यके तीन युगल और उच्चगोत्रकी जघन्य बृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टि परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला जीव अनन्तभागवृद्धि, अनन्तभागहानि और अवस्थानके द्वारा तीनों ही पदोंका स्वामी है। तिर्यञ्चगति, तिर्यश्वगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ अन्यतर बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक जीव अनन्तभागवृद्धि, अनन्तभागहानि और अवस्थानके द्वारा तीनों ही पदोंका स्वामी है। पञ्चेन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वैक्रियिकआङ्गोपाङ्ग, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, त्रसचतुष्क और निर्माणकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्व संक्लेशयुक्त अन्यतर पञ्चेन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तभागवृद्धिरूपसे जघन्य वृद्धिका, अनन्तभागहानिरूपसे जघन्य हानिका और इनमेंसे किसी एक स्थानमें जघन्य अवस्थानका स्वामी है। औदारिकशरीर, औदारिकआङ्गोपाङ्ग, आतप और उद्योतकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त अन्यतर पञ्चेन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तभागवृद्धिरूपसे जघन्य वृद्धिका, अनन्तभागहानिरूपसे जघन्य हानिका और इनमेंसे किसी एक स्थानमें जघन्य अवस्थानका स्वामी है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि तिर्यश्चगति, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका भङ्ग सामान्य नारकियोंके समान है। ५८९. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर संज्ञी सर्वविशुद्ध जीव भनन्तभागवृद्धिरूपसे जघन्य वृद्धिका, १. ता० प्रतौ तिण्णिवि० । तिरिक्खाणु० इति पाठः। २. ता. प्रतौ वड्डी क० ? पंचिं. इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426