Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 330
________________ भुजगारबंधे अप्पाबहुअं ३२१ आहारमि० सव्वभंगो । णवरि देवाउ०-तित्य० मणुसि भंगो। ५५४- इथिवे० पंचणा०-चदुदंस०-चदुसंज०-पंचंत० सव्वत्थो० अवट्टि । अप्प०' असं०गु० । भुज० विसे० । पंचदंस-मिच्छ०-बारसक०-भय०-दु०-तेजा०-क०-वण्ण४-अगु०४-बादर-पज्जत्त-पत्ते-णिमि० सव्वत्थो० अवत्त० । अवट्ठि. असं०गु० । अप्प० असं०गु० । भुज. विसे० । सेसाणं सव्वत्थो० अवहि० । अवत्त० असं०गु० । अप्प० असं०गु० । भुज० विसे० । आहारदुगं तित्थ० मणुसिभंगो । एवं पुरिस० । णवरि तित्थ० ओघं । __ ५५५. णqसगे पंचणा०-चदुदंस०-चदुसंज-पंचंत० इत्थिभंगो। पंचदंस०-मिच्छ०बारसक०-भय-दु०-ओरालि०-तेजा-क०-वण्ण४-अगु०-उप०-णिमि० सव्वत्थो० अवत्त । अवडि० अणंतगु० । अप्प० असं०गु० । भुज० विसे० । सेसाणं ओघं । अवगद० अप्पसत्थाणं सव्वत्थो० अवत्त० । भुज० संखेजगु० । अप्प० संखेजगु० । जीवों में देवों के समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि तीर्थक्कर प्रकृतिका भङ्ग नारकियों के समान है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवो' में जानना चाहिए । आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवों में सर्वार्थसिद्धिके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि देवायु और तीर्थकर प्रकृतिका भङ्ग मनुष्यिनियों के समान है। ५५४. स्त्रीवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायके अवस्थितपदके बन्धक जीब सबसे थोड़े हैं। इनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे भुजगारपदके यन्धक जीय विशेष अधिक हैं । पाँच दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और निर्माणके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अवस्थितपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। शेष प्रकृतियोंके अवस्थितपदके बन्धक जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अवक्तव्यपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक है। आहारकद्विक और तीर्थकर प्रकृतिका भङ्ग मनुष्यनियोंके समान है। इसी प्रकार पुरुषवेदी जीवोंमें जानना चाहिए । इतनो विशेषता है कि तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। ५५५. नपुंसकवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। पाँच दर्शनावरण, मिथ्यात्व, बारह कपाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात और निर्माणके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अवस्थितपदके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं । इनसे भल्पतरपदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे भुजगारपदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओवके समान है। अपगतवेदी जीवोंमें अप्रशस्त प्रकृतियोंके अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे थोड़े हैं । इनसे भुजगारपदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। प्रशस्त प्रकृतियोंमें अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सबसे थोड़े हैं। इनसे अल्पतरपदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। इनसे भुजगार १. ता. प्रतौ सव्वत्थो० [ अवत्त० ] । अववि० अप्प० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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