Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 353
________________ ३४४ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे विसु० अणियट्टिकरणे चरिमे ज० अणु० वट्ट० तस्स ज० हा० । एइंदि० थावर० ज० वड्डी क ? अण्ण० तिगदि० परिय० मज्झि० अनंतभागेण वडिदूण वड्ढी हाइदूण हाणी एक० अट्ठाणं | पंचिं० तेजा० क० - पसत्थ४- अगु० ३ -तस०४- णिमि० ज० वड्ढी क० ? अण्ण० चद्गदि० पंचिं० सण्णि० मिच्छा० सव्वाहि प० सागा० णियमा उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स अभागेण वड्डिण वड्ढी हाइदूण हाणी एकद० अवट्ठाणं । ओरालि०-ओरालि०अंगो०-उजो० ज० वड्ढी क० १ अण्ण० णेरइ० वा देवस्स वा मिच्छादिट्ठिस्स सव्वाहि प० सागा० णिय० उक्क० संकि० अनंतभागेण वड्डिण वड्ढी हाइदूण हाणी एक्क० अवड्डा० । वेउ०-वेउ० अंगो० ज० वड्ढी क० ? अण्ण० मणुस० पंचिं० तिरिक्ख०जोणीयस्स वा सण० मिच्छादि० सव्वाहि पज्ज० सागा० णियमा उक्क० संकि० अनंतभागेण वड्डिण वड्ढी हाइदूण हाणी एक० अवट्ठाणं । आहार०२ ज० वड्ढी क० १ अण्ण० अप्पमत्तसं० पमत्ताभिमुह० सागार० सव्वसंकि० अणंतभागेण वड्डिदूण वड्ढी हाइदूण हाणी एक० अवद्वाणं । आदा० ज० वड्ढी क० १ अण्ण० ईसातप्प देवस्स मिच्छा० सव्वाहि पजतीहि पञ्ज० सागार-जा० णिय० उक्क०संकलि० अणंतभागेण वड्डिण वड्ढी हाइदूण हाणी एक० अवट्ठाणं । तित्थ० ज० वड्ढी क० ? अण्ण० मणुसस्स वा मणुसीए वा असंजदसम्मादिडिस्स सव्वाहि पज० अन्तिम समय में जघन्य अनुभागबन्ध करता है वह जघन्य हानिका स्वामी है । एकेन्द्रिय जाति और स्थावरकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जो अन्यतर तीन गतिका परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला जीव है वह अनन्तभागवृद्धिके द्वारा वृद्धि, अनन्तभागहानिके द्वारा हानि और इनमेंसे किसी एक स्थानमें अवस्थानका स्वामी होता है । पचेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, त्रसचतुष्क और निर्माणकी जघन्य वृद्धि का स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त साकार - जागृत और नियमसे उत्कृष्ट संकेशयुक्त अन्यतर चार गतिका पश्चेन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तभागवृद्धिके द्वारा वृद्धि, अनन्तभागहानिके द्वारा हानि और इनमेंसे किसी एक स्थान पर अवस्थानका स्वामी है । औदारिकशरीर, औदारिक आंगोपांग और उद्योतकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार - जागृत और नियमसे उत्कृष्ट संकेशयुक्त अन्यतर मिथ्यादृष्टि देव और नारकी अनन्तभागवृद्धि के द्वारा वृद्धि, अनन्तभागहानि द्वारा हानि और इनमें से किसी एक स्थानपर अवस्थानका स्वामी है। वैक्रियिकशरीर और वैक्रियिकआंगोपांगकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त साकार जागृत और नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्तर मनुष्य और पचेन्द्रिय तिर्यनयोनि संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तभागवृद्धिद्वारा जघन्य वृद्धि का, अनन्तभागहानिद्वारा जघन्य हानिका और इनमेंसे किसी एक स्थानपर जघन्य अवस्थानका स्वामी है । आहारकद्विककी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? साकार जागृत और सर्व संक्लेशयुक्त प्रमत्तसंयतके अभिमुख अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव अनन्तभागवृद्धिद्वारा जघन्य वृद्धिका, अनन्तभागहानिके द्वारा जघन्य हानिका और इनमेंसे किसी एक स्थान पर जघन्य अवस्थानका स्वामी है। आतपकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत और नियमसे उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर ऐशानकल्प तकका मिथ्यादृष्टि देव अनन्तभागवृद्धिके द्वारा जघन्य वृद्धिका, अनन्तभागहानिके द्वारा जघन्य हानिका और इनमें से किसी एक स्थान पर जघन्य अवस्थानका स्वामी है। तीर्थङ्करप्रकृतिकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे साकार जागृत और उत्कृष्ट संक्लेशसे प्रतिभग्न हुआ पर्याप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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