Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 351
________________ ३४२ महाबंधे अणुभागबंधाहिवारे परिणामस्स अणंतभागेण वड्डिदूण वड्डी हाइदूण हाणी एकदरत्थमवहाणं । अपच्चक्खाण०४ ज० वड्डी क० १ अण्ण० संजमादो वा संजमासंजमादो वा परिवदमाणस्स' दुसमयअसंजदसम्मादिहिस्स तस्स जह० वड्ढी । ज० हा० क० १ अण्ण. असंज० सव्वाहि पञ्जत्तीहि पञ्जत्तगदस्स सागार-जा० सव्वविसु० से काले संजमं पडिवजिहिदि ति तस्स [ज.] हाणी। ज. अवट्ठा० क.? अण्ण. असंज० सव्वाहि पज्जत्तीहि पञ्ज. सागा. सव्वविसु० उक्क विसोधीदो पडिभग्गस्स अणंतभागेण वड्विदूण अवद्विदस्स तस्स ज. अवहाणं । पञ्चक्खाण०४ ज० वड्ढी क० ? अण्ण० संजमादो परिवदमाणस्स दुसमयसंजदासंजदस्स ज० वड्ढी । ज. हा० क० ? अण्ण० संजदासंजदस्स सागार-जा० सव्वविसु० से काले संजमं पडिवजिहिदि तस्स ज० हा० । ज. अवहा० के० ? अण्ण. सागार-जा. तप्पाङग्गउक्क० विसोधीदो पडिभग्गस्स अणंतभागेण वड्ढिदूण अवहिदस्स तस्स ज० अवट्ठाणं । चदुसंज०-पुरिस०हस्स-रदि-भय-दु०-अप्पसत्थ०४-उप० जव्वड्ढी अवहाणं णाणावरणभंगो। ज० हा० क० १ अण्ण० खवग० अपुव्वक० अणियट्टिस्स । णवरि अप्पप्पणो पाओग्गं णादव्वं । इत्थि०-णस० ज० वड्ढी क० ? अण्ण० चदुगदियस्स पंचिं० सण्णि० मिच्छा० सव्वाहि० सागार-जा० तप्पाओ'• विसु० अणंतभागेण वड्डिदूण वडढी हाइदूण हाणी जो परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि जीव है वह अनन्तभाग वृद्धिरूपसे वृद्धि अनन्तभागहानिरूपसे हानि और इनमेंसे किसी एक जगह अवस्थानका स्वामी है। अप्रत्याख्यानावरणचतुष्ककी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? संयमसे और संयमासंयमसे गिरनेवाला जो अन्यतर दो समयवर्ती असंयतसम्यग्दृष्टि जीव है वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत और सर्व विशद्ध जो अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि जीव अनन्तर समयमें संयमको प्राप्त होगा वह जघन्य हानिका स्वामी है। जघन्य अवस्थानका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध जो अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि जीव उत्कृष्ट विशुद्धिसे प्रतिभग्न होकर अनन्तभागवृद्धिके साथ अवस्थित है वह जघन्य अवस्थानका स्वामी है। प्रत्याख्यानावरणचतुष्ककी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? संयमसे गिरनेवाला जो दो समयवर्ती संयतासंयत जीव है वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध जो अन्यतर संयतासंयत जीव अनन्तर समयमें संयमको प्राप्त होगा वह जघन्य हानिका स्वामी है। जघन्य अवस्थानका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत जो अन्यतर जीव तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिसे प्रतिभग्न होकर अनन्तभागवृद्धिके साथ अवस्थित ह वह जघन्य अवस्थानका स्वामी है। चार संज्वलन, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, अप्रशस्त वर्णचतुष्क और उपघातकी जघन्य वृद्धि और अवस्थानका स्वामी ज्ञानावरणके समान है । जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? अन्यतर अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण क्षपक जीव जघन्य हानिका स्वामी है । इतनी विशेषता है कि अपने-अपने प्रायोग्य जानना चाहिए । स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत और तत्प्रायोग्य विशुद्ध अन्यतर चार गतिका पश्चेन्द्रिय संज्ञी और मिथ्यादृष्टि जीव है वह अनन्तभागवृद्धिके द्वारा वृद्धि, अनन्तभागहानिके द्वारा हानि १. श्रा० प्रतौ संजमादो परिवदमाणस्स इति पाठः । २. ता० प्रतौ वडिदूण उ) अ) वहिदस्स, आ. प्रती वडिदूण उवहिदस्स इति पाठः। ३. ता० प्रा०:प्रत्योः सागारजा कसाओ० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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