Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 350
________________ पदणिक्खेवे सामित्तं ३४१ परिवड्डी संजदस्स या अणंतभागफद्दगपरिवड्डी मिच्छादिद्विस्स या अणंतभागपरिवड्डी सा अणंतगुणा । एदेण अट्ठपदभूदसमासलक्खणेण दुवि० । ओघे० पंचणा०-चदुदंस०पंचंत० जहण्णिगा वड्डी कस्स ? अण्णदरस्स उवसा० परिवद० दुसमयसुहुमसं० तस्स जह० वड्डी । जह० हा० क० ? अण्ण० सुहुमसंप० खवगचरिमे जह० अणु० वट्ट० तस्स जह० हाणी। जह० अवहा० क० ? अण्ण० अप्पमत्तसं० अक्खवग० अणुवसमग० सागार-जा० सव्वविसुद्धस्स उक्कस्सविसोधीदो पडिभग्गस्स अणंतभागेण वड्विदण अवढिदस्स जह० अवट्ठाणं । णिहाणिद्दा-पचलापचला-थीणागि०-मिच्छ०अणंताणु० जह० वड्ढी क० ? अण्ण संजमादो वा संजमासंजमादो वा सम्मत्तादो वा परिवदमाणगस्स दुसमयमिच्छादिहिस्स तस्स जह० वड्ढी। ज. हा० क० १ अण्ण मणुसस्स वा मणुसीए वा मिच्छादिट्टि० सव्वाहि पज्जत्तीहि पजत्तगदस्स सागार-जा० सव्वविसु० से काले संजमं पडिवजिहिदि त्ति तस्स ज० हा०। ज० अवट्ठा० क० ? अण्ण० पंचिंदियस्स मिच्छाद्विस्स सव्वाहि पजत्तीहि पञ्जत्तगदस्स सागार-जा० तप्पाओग्गउक्कस्सगादो विसोधीदो पडिभग्गस्स अणंतभागेण वड्डिदूण अवढिदस्स तस्स जह० अवठ्ठा० । णिद्दा-पयलाणं जह० वड्डी अवट्ठाणं णाणावरणभंगो । जह० हा० क० ? अण्ण० खवग० अपुवकरणस्स णिद्दा-पयलाणं बंधचरिमे वट्टमा० तस्स जह० हाणी । सादासाद०-थिराथिर-सुभासुभ-जस०-अजस० जह. वड्ढी कस्स ? अण्ण० सम्मादिहिस्स वा मिच्छादिहिस्स वा परियत्तमाणमज्झिमजो अनन्तभाग स्पर्धकवृद्धि है तथा मिथ्यादृष्टिकी जो अनन्तभागवृद्धि है वह अनन्तगुणी है। संक्षपमें कहे गये इस अर्थपदके अनुसार निदेश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे नावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है? जिस गिरनेवाले अन्यतर उपशामकने सूक्ष्म साम्परायमें दो समय तक बन्ध किया है वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर सूक्ष्मसाम्पराय क्षपक जीव अन्तिम अनुभागबन्धमें अवस्थित है वह जघन्य हानिका स्वामी है। जघन्य अवस्थानका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अक्षपक और अतुपशामक अप्रमत्तसंयत जीव साकार-जागृत है, सर्वविशुद्धि है, उत्कृष्ट विशुद्धसे प्रतिभन्न हुआ है और अनन्तभागवृद्धिके साथ अवस्थित है वह जघन्य अवस्थानका स्वामी है। निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर जीव संयमसे, संयमासंयमसे और सम्यक्त्वसे गिर कर दो समयवर्ती मिथ्यादृष्टि है वह जघन्य वृद्धिका स्वामी है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? मिथ्या दृष्टि, सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार जागृत और सर्वविशुद्ध जो अन्यतर मनुष्य या मनुष्यनी जीव अनन्तर समयमें संयमको प्राप्त करेगा वह जघन्य हानिका स्वामी है। जघन्य अवस्थानका स्वामी कौन है? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त और साकारजागृत जो अन्यतर पञ्चेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीव तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिसे प्रतिभन्न होकर अनन्तभागवृद्धिके साथ अवस्थित है वह जघन्य अवस्थानका स्वामी है। निद्रा और प्रचलाकी जघन्य वृद्धि और अवस्थानका स्वामी ज्ञानावरणके समान है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर अपूर्वकरण क्षपक जीव निद्रा और प्रचलाके बन्धके अन्तिम समयमें विद्यमान है वह जघन्य हानिका स्वामी है । सातावेदनीय, असातावेदनोय, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशःकीर्ति और अयशःकीर्तिकी जघन्य वृद्धि [हानि और अवस्थान ] का स्वामी कौन है ? PHHHHHEAL Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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