Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 346
________________ पदणिक्खेवे सामित्तं ओघं । विभंगे पसत्थाणं मदिभंगो। सेसाणं पंचिंदियभंगो। ५७८. आभिणि-सुद०-ओधि० पंचणा०-छदंस०-असाद०-बारसक०-पुरिस० - अरदि-सोग-भय-दु०-अप्पसत्थ०४-उप०-अथिर-असुभ-अजस०-पंचंत० उक्क० वड्ढी क० १ अण्ण. असंज. सागार-जा० णियमा उक्क०संकिलिहस्स मिच्छत्ताभिमुहर चरिमे उक्क० अणुभा० वट्टमा० तस्स उक्क० वड्ढी । उक्क० हाणी क० ? यो तप्पा ऑग्गउक्कस्सगादो संकिलेसादो पडिभग्गो तप्पाओग्गजह० पदिदो तस्स उ० हा० । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । हस्स-रदीणं सत्थाणे तिण्णि वि कादव्वाणि । सेसाणं ओघं । मणपज्जवे पढमदंडओ ओधिणाणिभंगो' । णवरि असंजमाभिमुह० । एवं हस्सरदीणं पि । सेसं ओघं । एवं संजद-सामाइ०-छेदो० । णवरि सामा०-छेदो० साद०जस०-उच्चा० उक्क० वड्ढी अवहाणं ओघं । उक्क. हाणी क० १ अण्ण. उवसाम० परिवद० विदियसमयअणियट्टि०संजदाणं । सव्वाणं हाणी मणुसिभंगो । परिहार० पढमदंडओ मणपज्जवभंगो । णवरि वड्ढी सामाइय-च्छेदोवद्वावणाभिमुहस्स । सेसाणं सत्थाणं कादव्वं । संजदासंजदे पढमदंड० वड्ढी ओधि भंगो । हाणी अवहाणं सत्थाणे । साददंडओ वड्ढी संजमाभिमुह । हाणी अवट्ठाणं सत्थाणे । असंजदे समान है। शेष ओघके समान है। विभङ्गज्ञानी, जीवोंमें प्रशस्त प्रकृतियोंका भङ्ग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रियोंके समान है। ५५८. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, असातावेदनीय, बारह कषाय, पुरुषवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात, अस्थिर, अशुभ, अयश कीर्ति और पाँच अन्तरायकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि साकार-जागृत है, नियमसे उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला हे और मिथ्यात्वके अभिमुख होकर अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है? जो तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संक्शसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्यको प्राप्त हुआ है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। तथा वही अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । हास्य और रतिके तीनों ही पद स्वस्थानमें करने चाहिए । शेष प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। मनःपर्ययज्ञानी जीवामें प्रथम दण्डकका भङ्ग अवांधज्ञा जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि असंयमके अभिमुख जीवके उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामित्व कहना चाहिए । इसी प्रकार हास्य और रतिका भी कहना चाहिए । शेष भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार संयत, सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनासंयत जीवोंमें सातावेदनीय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रकी उत्कृष्ट वृद्धि और उत्कष्ट अवस्थानका भङ्ग ओघके समान है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है?जिस गिरनेवाले उपशामकने अनिवृत्तिकरणमें दो समय तक बन्ध किया है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। यहाँ सब प्रकृतियोंकी हानिका भङ्ग मनुष्यिनियोंके समान है। परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंमें प्रथम दण्डकका भङ्ग मनःपर्ययज्ञानी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि वृद्धि सामायिक और छेदोपस्थापनासंयतके अभिमुख हुए जीवके होती है। शेष प्रक तियोंका भङ्ग स्वस्थानमें करना चाहिए । संयतासंयत जीवोंमें प्रथम दण्डककी वृद्धिका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। इसकी हानि और अवस्थान स्वस्थानमें होते हैं। सातावेद १. ता. आ. प्रत्योः ओधिविभंगो इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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