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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे वड्ढी ओघं । उ० हा० क० १ अण्ण० उवसाम० परिवद० सुहुमसं० दुसमयबंधगस्स तस्स उ० हा० । एवं सुहुमसंपराइ ।।
५७६. कोधादि०४ ओघं । णवरि सादा०-जस०-उच्चा० उक० वड्ढी अवहाणंओषं । उ० हा० क० ? अण्ण० यो उवसाम० कोधसंजलणाए से काले अबंधगो होहिदि त्ति मदो देवो जादो तप्पाऑग्गजह० पदिदो तस्स उक्क० हाणी । एवं माणे मायाए । लोमे ओघं।
५७७. मदि-सुदे पढमदंडओ हस्स-रदिदंडओ ओघं । सादा० देवगदिपसत्यसत्तावीसं उचा० उक्क० वड्ढी क० ? अण्ण० मणुसस्स सागार-जागार० सव्वविसुद्ध० संजमाभिमुहस्स चरिमे समए उक्कस्सगे अणुभागबंधे वट्टमाणस्स तस्स उ० वड्ढी । उ० हाणी क० १ अण्णदरस्स संजमादो परिवदमाणगस्स दुसमयबंधगस्स तस्स उक्क० हाणी । उक्क० अवट्ठाणं क० १ यो तप्पाऑग्गउक्क० विसोधीदो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाओ० जह० पदिदो तस्स उक्क० अवहाणं । एवं संजमाभिमुहाणं । मणुसगदिपंच० उक्क० वड्ढी क० १ सम्मत्ताभिमुहस्स उक्क० वड्ढी । उक्क० हाणी क० ? सम्मत्तादो परिवद० दुसमयबंध० तस्स उ० हाणी । अवट्ठाणं सादभंगो। सेसं
वेदनीय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी ओघके समान है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? गिरनेवाले जिस अन्यतर उपशामकने सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानमें दूसरे समयमें बन्ध किया है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्परायसंयतके जानना चाहिए।
५७६. क्रोधादि चार कषायवाले जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि सातावेदनीय, यश-कीर्ति और उच्चगोत्रकी उत्कष्ट वृद्धि और अवस्थानका भङ्ग ओघके समान है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर उपशामक क्रोधसंज्वलनके बन्धसे अनन्तर समयमें अबन्धक होगा कि मरा और देव होकर तत्प्रायोग्य जघन्यको प्राप्त हुआ वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। इसी प्रकार मान और मायाकषायवाले जीवोंमें जानना चाहिए । लोभकषायवाले जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है।
५७७. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें प्रथम दण्डक और हास्य-रतिदण्डक ओघके समान है। सातावेदनीय, देवगति आदि प्रशस्त सत्ताईस प्रकृतियाँ और उच्चगोत्रकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर मनुष्य साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध संयमके अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है? संयमसे गिरनेवाले जिस अन्यतर जीवने दो समय तक बन्ध किया है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? जो तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिसे साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभन्न होकर जघन्यको प्राप्त हुआ है वह उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। इस प्रकार संयतके अभिमुख होकर उत्कृष्ट वृद्धिको प्राप्त होनेवाली प्रकृतियोंका स्वामित्व जानना चाहिए । मनुष्यगतिपञ्चककी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? सम्यक्त्वके अभिमुख हुआ जीव उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? सम्यक्त्वसे च्युत होकर जिसने दो समय तक बन्ध किया है वह उकृष्ट हानिका स्वामी है । अवस्थानका भङ्ग सातावेदनीयके
१. आ. प्रतौ कोषसंजलणा वि से इति पाठः ।
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