Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 347
________________ ३३८ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे पढमदंडओ ओघ । साददंडओ मदि०भंगो । णवरि असंजदसम्मादिहिस्स कादव्वा । सेसं ओघं । ५७९. चक्खुदं० तसपजत्तभंगो। अचक्खु० ओघं । ओधिदं०-सम्मा०-खइग. ओधि भंगो । णवरि खइगे पढमदंडए वड्ढी सत्थाणे कादव्वा । ५८०. किण्णाए पढमदंडओ णqसगभंगो। साददंडओ णिरयभंगो। इत्थि - पुरिस-हस्स-रदि-चदुजादि-पंचसंठा०-पंचसंघ०-थावरादि०४ णqसगभंगो । देवगदिपंच० उक्क० वड्डी क० ? यो तप्पा-जह विसोधिंगदो उक्क० अणु० पबंधो तस्स उक्क०वड्डी । उक० हा० क० १ यो तप्पा०उक्क०अणुभा० बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाओ० ज. पडिदो तस्स उक्क हा० । तस्सेव से काले उक्क० अवहाणं। सेसं ओघादो साधेदव्वं । ५८१. णील-काऊणं पढमदंडओ साददंडओ इत्थि०-पुरिस०-हस्स-रदि-चदुसंठा० चदुसंघ० णिरयभंगो। णिरय०-चदुजादि-णिरयाणु०-थावरादि०४ उक्क० वड्डी कस्स ? यो तप्पाॲग्गजह०संकिलेसादो उक्क०संकिलेसं गदो तदो उ० अणुभा० पबंधो तस्स उक्क० बड्डी । उ० हा० क० ? यो उक्क० अणुभा० बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पा० नीयदण्डककी दृद्धिका स्वामी संयमके अभिमुख हुआ जीव है। हानि और अवस्थान स्वस्थानमें होते हैं। असंयत जीवोंमें प्रथम दण्डक ओधके समान है। सातावेदनीयदण्डकका भा मत्यज्ञानी जीवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि असंयतसम्यग्दृष्टिके कहना चाहिए। शेष भङ्ग ओघके समान है। __५७९. चक्षुदर्शनवाले जीवोंमें सपर्याप्त जीवोंके समान भङ्ग है। अचक्षुदर्शनवाले जीवों में ओघके समान भङ्ग है । अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवामें अवधिज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें प्रथम दण्डकमें वृद्धि स्वस्थानमें कहनी चाहिए। ५८०. कृष्णलेश्यामें प्रथम दण्डकका भङ्ग नपंसकोंके समान है। सातावेदनीयदण्डकका भंग नारकियोंके समान है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, चार जाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन और स्थावर आदि चारका भङ्ग नपुंसकोंके समान है। देवगतिपश्चककी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जिसने तत्प्रायोग्य विशुद्धिको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागबन्ध किया है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जो जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्यको प्राप्त हुआ है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। तथा वही अनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। शेष सब ओघके अनुसार साध लेना चाहिए। ५८१. नील और कापोत लेश्यामें प्रथम दण्डक, साता दण्डक तथा स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, चार संस्थान और चार संहननका भङ्ग नारकियोंके समान है। नरकगति, चार जाति, नरकगत्यानुपूर्वी और स्थावर आदि चारकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जिसने तत्यायोग्य जघन्य संक्लेशसे उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागबन्ध किया है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जो १. आ. प्रतौ संजदासजदे पढमदंडओ ओघं इति पाठः । २. ता.आ. प्रत्योः खइग० वेदग० ओधि० भंगो इति पाठः। ३. ता. प्रती णिरयभंगो। देवगदिपंच० उक्क० इथि० इति पाठः । ४. ता. प्रतौ णबुंसकभंगो। वड्डी क० इति पाठः । ५. आ. प्रतौ ओघेण इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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