________________
पदणिक्खेवे सामित्तं
३२७
०
संकिलेसेण तप्पाऔगउक्कस्सं गदो तप्पाओगउकस्सगं अणुभागं पबंधो तस्स उक्क० बड्डी । उक्क० हाणी कस्स ? यो तप्पा ओंगउक्कस्सगं अणुभागं बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पा ओंग्गजहण्णए पदिदो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवडाणं । णिरयाउग० उक्क० वड्डी कस्स ? यो तप्पाऔग्गजहण्णगादो संकिलेसादो तप्पाअग्गउकस्ससंकिलेसं गदो तदो उक्क • अणुभागं पबंधो तस्स उ० वड्डी । उक्क० हाणी क० १ यो उक्क० अणुभा० बंधमाणो सागारक्खरण पडिभग्गो तप्पाऔग्गजहण्णए पदिदो तस्स उ० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवहाणं । तिण्णिआउ०- आदा० उ० वड्डी' क० १ यो तप्पाऔग्गजहणगादो विसोधीदो उक्कस्सविसोधिं गदो तदो तप्पा ओंगउक्क० अणुभागं पबंधो तस्स उक्क० वड्डी । उ० हा० क० ? यो तप्पाऔग्गउकस्सगं अणुभागं बंधमाणो सागारक्खण पडिभग्गो तप्पाऔग्गजहण्णए पदिदो तस्स उ० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवद्वाणं । णिरयग० - असंप० - णिरयाणु० - अप्पस ०बड्डी क० ? यो चट्ठा० यवमज्झ० उवरिं अंतोकोडा० बंधमाणो उकस्ससंकिलेसेण उक्कस्सयं दाहं गदो तदो उक्कस्सअणुभागबंधो तस्स उक्क० वड्डी । उ० हाणी कस्स यो उक्क० अणुभागं बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाऔग्गजहणए पदिदो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवडाणं । मणुसगदि
- दुस्स०
उक्क०
वृद्धिको प्राप्त होकर तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामोंके द्वारा तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट संशरूप परिणामोंको प्राप्त होकर तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करता है, वह उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जो जीव साकार उपयोगके क्षय होनेसे निवृत्त होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागबन्ध करता है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । तथा उसीके तदनन्तर समय में उत्कृष्ट अवस्थान होता है । नरकायुकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो तत्प्रायोग्य जघन्य संक्केशसे तत्त्रायोग्य उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहा है वह नरकायुकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागबन्ध कर रहा है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है तथा उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है । तीन आयु और आतपकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो तत्प्रायोग्य जघन्य विशुद्धि से तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहा है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला जो जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्यको प्राप्त हुआ है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । तथा उसीके तदनन्तर समय में उत्कृष्ट अवस्थान होता है । नरकगति, असम्प्राप्तासृपाटिकासंहनन, नरकगत्यानुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो चतु:स्थानिक यवमध्यके ऊपर अन्तःकोड़ाकोडीप्रमाण स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव उत्कृष्ट संक्लेशके द्वारा उत्कृष्ट दाहको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करता है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभग्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्यको प्राप्त हुआ है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है | तथा उसीके तदनन्तर समय में उत्कृष्ट अवस्थान होता है । मनुष्यगतिपञ्चककी उत्कृष्ट १. ता० प्रतौ श्रदाउजो० उ० वड्डी, आ० प्रतौ प्रादाउजो० वड्डी इति पाठः ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org