Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 337
________________ ३२८ महाबंधेअणुभागबंधाहियारे पंचग० उक्क० वड्डी कस्स ? यो जहण्णगादो विसोधीदो उकस्सगं विसोधिं गदो तदो उक्क० अणु० पबंधो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स ? यो उक्कस्सं अणुभा० बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाओग्गजह० पडिदो तस्स उक्क० हाणो । तस्सेव से काले उक्क० अवहाणं । देवग०-उ०-आहार-वेउ०-आहार० अंगो०-देवाणु० उक्क० वड्डी क० ? अण्ण. खवग० अपुव्वकरणपरभवियणामाणं बंधचरिमे वट्टमाणगस्स तस्स उक० वड्डी । उक० हाणी कस्स ? उवसामयस्स परिवदमाणयस्स परभवियणामाणं दुसमय०बंधगस्स उक्क० हाणी । उ० अवहा० क० ? अण्ण० अप्पमत्त० अखवग० अणुवसामयस्स सागार-जागार० सव्वविसुद्धस्स अंतोमुहुत्तं अणंतगुणाए सेढीए वड्डिदूण अवहिदस्स तस्स उक्क० अवट्ठाणं । पंचिं०-तेजा०-क०समच०-पसत्थ०४-अगु०३-पसत्थ०-तस०४-थिरादिपंच०-णिमि०-तित्थ० उक० बड्डी कस्स ? अण्ण० खवग० अपुव्वकर० परभवियणामाणं बंधचरिमे वट्टमाणसम्म तस्स उक० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स ? यो उवसामाणं से काले परभवियणाण अबंधगो होहिदि ति तदो तप्पाओग्गजहण्णए पदिदो तस्स उक्क० हाणी । उक० अवट्ठाणं सादभंगो। उजो० उक्क० वड्डी क० ? अण्ण० सत्तमाए पुढवीए णेरइगस्स मिच्छादिहिस्स सव्वाहि पजत्तीहि पजत्तगदस्स सागार-जा० सव्वविसु० अणियट्टिकरणे वट्टमाणगस्स से काले सम्मत्तं पडिवजिहिदि ति तस्स उक्क. वड्डी । उक्क० वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो जघन्य विशुद्धिसे उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागबन्ध कर रहा है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्यको प्राप्त हुआ है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। तथा उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है । देवगति, वैक्रियिकशरीर, आहारकशरीर, वैक्रियिक आङ्गोपाङ्ग, आहारकभाङ्गोपाङ्ग और देवगत्यानुपूर्वीकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर जो क्षपक अपूर्वकरणमें परभवसम्बन्धी नामकर्मकी प्रकृतियोंके बन्धके अन्तिम समयमें अवस्थित है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है? गिरनेवाला जो उपशामक परभवसम्बन्धी नामकर्मकी प्रकृतियोंके बन्धके द्वितीय समयमें स्थित है वह उत्कृट हानिका स्वामी है । उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? अक्षपक और अनुपशामक तथा साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर जो अप्रमत्तसंयत जीव अन्तर्मुहूर्त काल तक अनन्तगुणी श्रेणिरूपसे वृद्धिको प्राप्त होकर अवस्थित है वह उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है । पञ्चेन्द्रियजाति, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर आदि पाँच, निर्माण और तीर्थङ्करकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अन्यतर क्षपक जीव अपूर्वकरणमें नामकर्मकी परभवसम्बन्धी प्रकृतियोंके बन्धके अन्तिम समयमें अवस्थित है वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृट हानिका स्वामी कौन है ? जो उपशामक अनन्तर समयमें नामकर्मकी परभवसम्बन्धी प्रकृतियोंका अबन्धक होगा कि इसी बीच में तत्प्रायोग्य जघन्यको प्राप्त हुआ है वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उत्कृष्ट अवस्थानका भंग सातावेदनीयके समान है। उद्योतकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? मिथ्यादृष्टि, सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध जो अन्यतर सातवीं पृथिवीका नारकी जीव अनिवृत्तिकरणमें रहते हुए तदनन्तर समयमें सम्यक्वको प्राप्त होनेवाला है वह उत्कृष्ट वृद्धिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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