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महाणुभागबंधाहियारे
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अताणु लोभो अनंतगु० । माया विसे० । कोधो विसे० । माणो विसे० । संजलणलोभो अनंतगु० । माया विसे० । कोधो विसे० । माणो विसे० । एवं पच्चक्खाण०४अपच्चक्खाण०४ । आभिणि० - परिभोग० दो वि तुल्ला० अनंतगु० । चक्खु० अांतगु० । सुद०-अचक्खु०-भोग० तिष्णि वि तुल्ला० अनंत० । अधिणा० - ओषिदं०लाभंत० तिणि वितुल्ला • अांतगु० । मणपज्जव ० -थीणगि० दाणंतरा० तिण्णि वि तुल्ला० अनंत० । णस० अनंत० । अरदि ० अनंत० । सोग० अनंत० । भय० अनंत० । दुगुं० अणंत० । णिद्दाणिद्दा० अनंत० । पचलापचला • अनंतगु ० ही ० । णिद्दा० अनंत । पचली. अनंत० । णीचा० - अजस० दो वि तु० अण तगु० । तिरिक्ख • अनंतगु ० । इत्थि० अनंत० । पुरिस० अनंत० । रदि० अनंत० । हस्स० अनंत० । मणुसाउ० अनंत० । तिरिक्खाउ० अनंतगु० । एवं सत्तसु पुढवी | raft [सत्तमी] मणुसाउ० णत्थिं० ।
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४३८. तिरिक्खेसु सव्वतिव्वाणु० सादा० । जस०- उच्चा० अनंतगु० । देववेदनीय और वीर्यान्तराय के अनुभाग चारों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हीन हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी लोभका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे अनन्तानुबन्धी मायाका अनुभाग विशेष हीन है। इससे अनन्तानुबन्धी क्रोध का अनुभाग विशेष हीन है। इससे अनन्तानुबन्धी मानका अनुभाग विशेष हीन है । इससे संज्वलन लोभका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे संज्वलन मायाका अनुभाग विशेष हीन है। इससे संज्वलन क्रोधका अनुभाग विशेष हीन है। इससे संज्वलन मानका अनुभाग विशेष हीन है। इसी प्रकार क्रमसे प्रत्याख्यानावरण चार और अप्रस्थाख्यानावर चारका अल्पबहुत्व है । अप्रत्याख्यानावरण मानके अनुभागसे श्रभिनिबोधिक ज्ञानावरण और परिभोगान्तरायके अनुभाग दोनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हीन हैं। इनसे चक्षुदर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे श्रुतज्ञानावरण, अचक्षुदर्शनावरण और भोगान्तरायके अनुभाग तीनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हीन हैं। इनसे अवधिज्ञानावरण, श्रवधिदर्शना वरण और लाभान्तरायके अनुभाग तीनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हीन हैं । इनसे मन:पर्ययज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धि और दानान्तरायके अनुभाग तीनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हीन हैं । इनसे नपुंसक वेदका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे अरतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे शोकका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे भयका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे जुगुप्साका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे निदानिद्रा का अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे प्रचलाप्रचलाका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे निद्राका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे प्रचलाका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे नीचगोत्र और अयशः कीर्ति के अनुभाग दोनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे हीन हैं। इससे तिर्यञ्चगतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे स्त्रीवेदका अनुभाग अनन्तगुरणा हीन है। इससे पुरुषवेदका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे रतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे हास्यका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे मनुष्यायुका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे तिर्यवायुका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इसी प्रकार सातों पृथिवियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सातवीं पृथिवी में मनुष्यायु नहीं है ।
४३८. तिर्यों में सातावेदनीय सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे यशःकीर्ति और उच्चगोत्र १. श्र० प्रतौ शिद्दाणिद्दा० अत० पचला० इति पाठः । २. ता० प्रतौ सत्तसेसु. ( सत्तसु ) इति पाठः । ३. श्र० प्रतौ मणुसाउ० इत्थि० इति पाठः ।
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