Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 284
________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो २७५ ए०, उ० अंतो० । अवद्वि० ओघं० । दोवेदणी ० -- सत्तणोक ० -- पंचजा०-- बस्संठी०ओरालि० अंगो ० --- इस्संघ ० - पर० --- उस्सा ०० -- आदाउज्जो ०--दोविहा ० -- तसादिदसयु० तिष्णिप० णाणा० भंगो । अवत्त ० ज० उ० अंतो० । चदुआउ०- वेडव्वियछ ० - मणुस ० : तिरिक्खोघं । तिरिक्ख ०३ तिण्णिप० णाणा ०: ० भंगो | अवत्त० ओघं । ओरालि० तिष्णिप सादभंगो । अवत्त० ओघं । ०३ 1 1 ४६१. आहारगेसु पंचणाणावरणादिदंडओ ओघं । णवरि अवद्वि० ज० ए०, अवत्त० ज० तो ०, दोन्हं पि [अ०] अंगुल० असंखे० । श्रीणागिद्धिदंडओ अवहि●अवत्त० णाणा० भंगो । सेसं ओघं । सादादिदंडओ ओघं । णवरि अवधि ० णाणा०भंगो । इत्थ० मिच्छ० भंगो० । णवरि तिष्णिपदा श्रघं । पुरिस० ओघं । अवहि ० णाणा० भंगो | णवंसगदंडओ ओघं । अवहि० णाणा० भंगो । तिण्णिचाउ ० -- वेड-व्वियछ० - मणुसगदितिग-- आहारदुगं तिष्णिपदा ज० ए०, अवत्त० ज० अंतो०, उ० अंगुल० असंखें । तिरिक्खाउ० श्रघं । अवद्वि० णाणा० भंगो । तिरिक्खगदितिगं अवहि ० - अवत्त • णाणा० भंगो । दोपदा ओघं । एइंदियादिदंडओ ओघं । अवहि० णाणा० भंगो । पंचिंदियदंडओ अवधि ० णाणा० भंगो । सेसाणं ओघ । ओरालि० और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तहै । अवस्थितपदका भङ्ग ओके समान है । दो वेदनीय, सात नोकषाय, पाँच जाति, छह संस्थान, श्रदारिकाङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, परघात, उच्छ्वास, श्रातप, उद्योत, दो विहायोगति और सादि दस युग के तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरण के समान है । अवक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। चार आयु, वैक्रियिक छह और मनुष्यगतित्रिकका भङ्ग सामान्य तिर्यों के समान है । तिर्यञ्चगतित्रिक के तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरण के समान है । अवक्तव्यपदका भङ्ग धके समान है। श्रदारिकशरीरके तीन पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । अवक्तव्यपदका भङ्ग ओघ के समान है । प्रकृतियोंके भुजगार ४६१. आहारकों में पाँच ज्ञानावरणादि दण्डकका भङ्ग ओघ के समान है । इतनी विशेषता है कि अवस्थित पदका जधन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और दोनों का उत्कृष्ट अन्तर अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है । स्त्यानगृद्धिदण्डक के अवस्थित और अवक्तव्य पदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। शेष भङ्ग ओघ के समान है । सातावेदनीय आदि दण्डकका भङ्ग श्रोघके समान है । इतनी विशेषता है कि अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरण के समान है। स्त्रीवेदका भङ्ग मिध्यात्व के समान है । इतनी विशेषता है कि तीन पद ओधके समान हैं । पुरुषवेदका भङ्ग ओके समान है । मात्र अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । नपुंसक वेददण्डका भङ्ग श्रघ के समान है । मात्र अवस्थित पदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । तीन आयु, वैक्रियिक छह, मनुष्यगतित्रिक और आहारकद्विकके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जधन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर अङ्गुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है । तिर्यञ्च आयुका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि अवस्थित - पदका भङ्ग ज्ञानावरण के समान है । तिर्यगतित्रिक के अवस्थित और अवक्तव्यपदका भङ्ग ज्ञानावरके समान है । तथा दो पदोंका भंग ओघके समान है । एकेन्द्रियजाति आदि दण्डकका भंग श्रधके समान है । मात्र अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरण के समान है। पचन्द्रियजाति दण्डक के १. ० प्रतौ पंचया छस्संठा ० इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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