Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 325
________________ ३१६ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ५४५. अवगद०-सुहमसं० अप्पसत्थाणं भुज०-अवत्त० ज० ए०, उ० वासपुधः । अप्प० ज० ए०, उ० छम्मासं० । पसत्थाणं भुज० ज० ए०, उ० छम्मासं० । अप्प०अवत्त० ज० ए०, उ. वासपुध० । सुहुमसं० अवत्त० णत्थि अंतरं। ५४६. आभिणि-सुद०-ओधि० मणुसगदिपंचग०-देवगदि०४ भुज०-अप्प० गस्थि अंतरं । अवडि० ज० ए०, उ० असंखेंजा लोगा। अवत्त० ज० ए०, उ० मासपुध० । णवरि ओघिणा० ज० ए०, उ० वासपुधः । एवं ओधिदं०-सुक्कले०-सम्मा० खइग०-वेदग० । उवसम० एदाओ पगदीओ ज० ए०, उ० वासपुधः। सेसाणं वर्षपृथक्त्वप्रमाण कहा है। इसका यह अभिप्राय है कि वर्षपृथक्त्वके अन्तरसे कोई न कोई जीव तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध करनेवाला देव और नरक पर्यायसे आकर इस भूमण्डलको सुशोभित करता है । विदेहोंमें निरन्तर तीर्थङ्कर होते हैं, इसलिए यह असम्भव भी नहीं है। फिर भी यहाँ यह पृथक्त्व शब्द ७ और ८ का वाची न होकर बहुत्व अर्थको व्यक्त करनेवाला है,ऐसा हमें प्रतीत होता है। शेष कथन सुगम है। - ५४५. अपगतवेदी और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें अप्रशस्त प्रकृतियोंके भुजगार और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। अल्पतरपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। प्रशस्त प्रकृतियोंके भुजगार पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कष्ट अन्तर छह महीना है। अल्पतर और अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। मात्र सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें धवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। विशेषार्थ-यहाँ पर अप्रशस्त प्रकृतियोंका भुजगार और अवक्तव्यबन्ध उपशमश्रेणिमें उतरते समय होता है, इसलिए इनके भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण कहा है। तथा क्षपकश्रेणिमें इनका अल्पतरबन्ध होता है इसलिए इस पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना कहा है। यद्यपि उपशमश्रेणिपर चढ़ते समय इन प्रकृतियोंका अल्पतर बन्ध होता है पर उपशमश्रेणिसे क्षपकश्रेणिका अन्तरकाल कम है, इसलिए यह अन्तर :क्षपकश्रेणिकी अपेक्षा लिया है। प्रशस्त प्रकृतियोंका अन्तर इससे भिन्न प्रकारसे लाना चाहिए । अर्थात् क्षपकश्रेणिकी अपेक्षा प्रशस्त प्रकृतियोंके भुजगारबन्धका और उपशमश्रेणिकी अपेक्षा इनके अल्पतर और अवक्तव्यपदका अन्तर लाना चाहिए । कारण स्पष्ट है। मात्र सूक्ष्मसाम्परायमें किसी भी प्रकतिका अवक्तव्यबन्ध नहीं होता। ५४६. आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें मनुष्यगतिपश्चक और देवगतिचतुष्कके भुजगार और अल्पतर पदके बन्धक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर मासपृथक्त्वप्रमाण है। इतनी विशेषता है कि अवधिज्ञानी जीवोंमें जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दा क्षायिकसम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें जानना चाहिए। उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें इन प्रकतियोंके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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