Book Title: Mahabandho Part 5
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 292
________________ भुजगारे खेत्ताणुगमो २८३ चदुसरीर-समचदु०-दोअंगो०-वजरि०-वएण०४-दोआणु०-अगु०४--पसत्य०-सस०४सुभग-मुस्सर-आदें -गिमि०-तित्थ०-उच्चा०-पंचंत. तिण्णिप० के०१ असंखें। अवत्त. के ? संखें । दोवेदणी--चदुणोक०--थिरादितिण्णियु. सव्वपदा के १ असंखें। दोआउ०-आहारदुगं सव्वप० के ? संखें। ___ ५०६. उवसम पंचणा०-छदंस०-अहक०-पुरिस०-भय-दु०--दुगदि-पंचिं०-चदुसरीर-समचदु०-दोअंगो०--वजरि०--वएण०४-दोआणु०-अगु०४--पसत्थ०-तस०४-- सुभग सुस्सर-आदें-णिमि०-उच्चा०-पंचंत. तिएिणप० के० १ असंखें । अवत० के०? संखें। आहारदुर्ग तित्य. सधप० के १ संखेंजा। सेसाणं सव्वपदा के ? असंखेंजा। एवं परिमाणं समत्तं । खेत्ताणुगमो ५१०. खेताणुगमेण दुवि०-ओघे० आदे। ओघे० पंचणाo--णवदंस.. मिच्छ०-सोलसक०-भय-दु०--ओरालि०--तेजा०-क०-वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि०पंचंत० भुज०-अप्प०-अवटि बंधगा केवडि खेते ? सव्वलोगे । अवत्त० के १ लोगस्स असंखेजदिभागे । सादासाद०-सत्तणोक-तिरिक्खाउ०--दोगदि०-पंचजा०-छस्संठाजुगुप्सा, दो गति, पश्चन्द्रियजाति, चार शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, दो प्रांगोपांग, वर्षभनाराच संहनन, वर्णचतुष्क, दो आनुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, सचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थङ्कर, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात है। दो वेदनीय, चार नोकषाय और स्थिर आदि तीन युगलके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। दो आयु और आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। ५०६. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, आठ कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, दो गति, पञ्चन्द्रियजाति, चार शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, दो प्रांगोपांग, वर्षभनाराच संहनन, वर्णचतुष्क, दो भानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, प्रसचतुष्क, सुभग, सुस्वर, 'प्रादेय, निर्माण, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीव कितने हैं। असंख्यात हैं । अवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। श्राहारकद्विक और तीर्थकरके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। शेष सब प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इस प्रकार परिमाण समाप्त हुआ। क्षेत्रानुगम ५१०. क्षेत्रानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तेजस शरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। प्रवक्तव्य पद के बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। सातावेदनीय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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