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मुजगारबंधे अंतराणुगमो
२६१ अवहि० णाणा मंगो। अवत्त० ज० अंतो०, उ० तेतीसं० सादि० पुव्वकोडिसमऊणं सादिगं भवदि । पंचिंदियदंडओ हिदिभुजगारभंगो। आहारदुर्ग पंचिंदियभंगो। समचदु०-पसत्य०--सुभग--सुस्सर--आदें--उच्चा० तिण्णिपदा णाणाभंगो । अवत्त० ज. अंतो०, उ० बेछाव० सोदि० तिण्णिपलि. देसू०। [ तित्थ० ] भुज०-अप्प० ज० ए०, उ० अंतो० । अवढि० ज० ए०, उ० तेत्तीसं० सादि० दोहि पुचकोडीहि दोहि वासपुधत्तेहि ऊणिगाहि सादिरे० । अवत्त० ज० अंतो०, उ० पुव्वकोडि० दे० वासपुधत्तेतृणाणि ।
४७४. गqसगे पंचणाणावरणादिपढमदंडओ विदियदंडओ थीण गिद्धिआदी तदियदंडोणिदादी चउत्थदंडो सादादी इत्थिभंगो। णवरि सव्वाणं दंडगाणं अवहि.. अवत्त ओघं । थीणगिदिदंडए भुज०-[अप्प०] ज० ए०, उ० तेतीसं० दे० । अहक०तिण्णिआउ०-वेउब्बियछ०-मणुसगदितिगं आहारदुगं ओघं । इत्थि०-णस०-पंचसंठा०पंचसंघ०-उज्जो०-अप्पसत्थ०-दूभग-दुस्सर-आणादें भुज०--अप्प० ज० ए०, अवत्त० ज० अंतो०, उ० तेत्तीसं० देसू० । अवहि० ओघं। पुरिस०-समचदु०-पसत्थवि०-सुभगसुस्सर-आदें तिण्णिपदा सादभंगो। अवत्त० ज० अंतो०, उ० तेत्तीसं० दे० । देवाउ० एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त अधिक तेतीस सागर है। अवस्थितबन्धका अन्तर ज्ञानावरणके समान है । प्रवक्तव्य बन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर एक समय कम पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागर है। पञ्चन्द्रियजातिदण्डकका भङ्ग स्थितिबन्धके भुजगार के समान है। आहारकद्विकका भङ्ग पञ्चन्द्रियोंके समान है । समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य अधिक दोछियासठ सागर प्रमाण है। तीर्थङ्कर प्रकृतिके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो वर्षपृथक्त्व कम दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागर है। प्रवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व कम एक पूर्वकोटि है।
४७४. नपुंसकवेदी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणादि प्रथम दण्डक, स्त्यानगृद्धि आदि द्वितीय दण्डक, निद्रादि तृतीय दण्डक और सातावेदनीय आदि चतुर्थ दण्डकका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि इन सब दण्डकोंके अवस्थित और अवक्तव्यपदका अन्तर ओघके समान है। स्त्यानगृद्धिदण्डकके भुजगार और अल्पतरबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। आठ कषाय, तीन आयु, वैक्रियिक छह, मनुय्यगतित्रिक और आहारकद्विकका भङ्ग ओघ के समान है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेयके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागर है। अवस्थितपदका अन्तर ओघके समान है । पुरुषवेद, समचतुरस्त्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयके तीन पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम
१. प्रा. प्रतौ पसत्य० सुत्सर इति पाठः।
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