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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे थावर-सुहुम-पज्जत्तापज्जत-पत्ते०-साधार०--थिराथिर-सुभासुभ--भग-अणादें-अजस०णिमि० ज० अज० सव्वलो० । इत्थि०-पुरिस०-तिरिक्खाउ०--चदुजा०--पंचसंठा
ओरा०अंगो०-छस्संघ०-पादाव०-दोविहा०-तस-सुभग-दोसर०-आदें ज० अज० लो. संखें । मणुसाउ०-मणुस०३ ज. अज० लो० असं० । [ उज्जो०-बादर-जस० ज० अज सत्तचो० । ] सव्वसुहुमाणं सव्वपगदीणं ज० अज. सव्वलो० । मणुसाउ० ज० अज. लो असं० सव्वलो०।
३८५. पंचिं०२ पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ०-सोलसक०-छण्णोक०--तिरिक्ख०अप्पसत्य०४-तिरिक्खाणु०--उप०-णीचा०--पंचंत० [ज.] खेत्त०, अज. अह. सव्वलो० । सादासाद०--एइंदि०-हुंड०-थावर०--थिराथिर-सुभासुभ-दूभग--अणादेंसंस्थान, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयशाकीर्ति और निर्माणके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, तिर्यश्चायु, चार जाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, भातप, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर और प्रादेयके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यायु और मनुष्यगतित्रिकके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योत, बादर और यशःकीर्तिके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सब सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सव लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यायके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-इन जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सब लोकप्रमाण है। इसलिए इस स्पर्शन और स्वामित्वको ध्यानमें रखकर यहाँ सब प्रकृतियों के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कहा गया है। विशेषताका स्पष्टीकरण अनेक वार कर आये हैं। इन जीवोंके उच्चगोत्रका बन्ध मनुष्यगति आदिके साथ ही सम्भव है, और मनुष्यायु आदिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन हर अवस्थामें लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं प्राप्त होता, इसलिए वह उक्त प्रमाण कहा है। उद्योत आदिका बन्ध या तो स्वस्थानमें होता है या ऊपर सात राजुके भीतर एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय होता है, इसलिए इनके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवांका स्पर्शन कुछ कम सात बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है । सूक्ष्म जीव सर्वत्र होते हैं, इसलिए इनमें सब प्रकृतियोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोकप्रमाण कहा है। मनुष्यायुका बन्ध करनेवाले सूक्ष्म जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और अतीत स्पर्शन सब लोकप्रमाण है, इसलिए वह उक्त प्रमाण कहा है।
३८५. पश्चन्द्रिय और पञ्चन्द्रिय पर्याप्त जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, छह नोकषाय, तिर्यञ्चगति, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उपघात, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, स्थावर,
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