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खेत्तपरूवणा
१४४.
थिराथिर -- सुभासुभ--दूभग-- अणादे० - अजस० - णिमि० णीचा ० - पंचंत० उ० लोगस्स असंखेज्जदिभागे । अणुक्कस्तं सव्वलोगे । सेसाणं सव्वतसपगदीर्णं बादर - जसगित्तिसहिदाणं उ० अणु० लो० असंखें । बादरपुढ० - आउ० ते ० पज्जत्ता' पंचि०तिरि०अपज्ज०भंगो । बादरपुढ० - आउ० तेउ० अपज्जत्त० पंचणा०-- णवदंसणा ० -- असादा ०मिच्छ०-सोलसक० - सत्तणोक० - तिरिक्ख ० -- एइंदि० - हुंड० - अप्पसत्य०४ - तिरिक्खाणु०उप०-थावरादि४-अथिरादिपंच० - णीचा ० पंचंत० उ० अणु० सव्वलो ० । सादा०ओरालि०--तेजा०--क० - पसत्थ०४ - अगु० ३ - पज्जत्त - पत्ते ० - थिर० - सुभ० - णिमि० उ० लोग० असं०, अणु० सव्वलो० | सेसाणं तसपगदीणं बादर - जसगित्तिसहिदाणं उ० अणु० लो० असंखें । वाऊणं पि तेउभंगो । णवरि यम्हि लोग० असंखे तम्हि लोग० संखें - कादव्वं । णवरि बादरवाङ आउ० बादरएइंदियभंगो ।
३४२. वणप्फदि- णियोद० थावरपगदीणं अप्पसत्थाणं उ० अणु० सव्वलो० । साणं सादादीणं तस थावरपगदीणं उ० लो० असंखे, अणु० सव्वलो ० । मणुसाउ० ओघं । बादरवणप्फदि- बादरणियोद-पज्जत्तापज्जत्त० थावरपगदीणं अप्पसत्थान
अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक साधारण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयशःकीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है और अनुत्कृष्ट अनुभाग बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । बादर और यशःकीर्ति सहित शेष सब त्रसप्रकृतियों के उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त और बादर अग्निकायिक पर्याप्त जीवों में पचेन्द्रिय तिर्यश्व अपर्याप्तकोंके समान भंग है । बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त, बादर जलकायिक अपर्याप्त और बादर अग्निकायिक अपर्याप्त जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिध्यात्व, सोलह कषाय, सात नोकषाय, तिर्यगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्ड संस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यञ्जगत्यानुपूर्वी, उपघात, स्थावर आदि चार, अस्थिर आदि पाँच, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका क्षेत्र सब लोक है । सातावेदनीय, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ और निर्माणके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र हैं और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है । बादर और यश कीर्ति सहित शेष त्रस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है । वायुकायिक जीवोंका भी अग्निकायिक जीवोंके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि जहाँ पर लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र कहा है, वहाँ पर लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र करना चाहिए । इतनी विशेषता है कि बाहर वायुकायिक जीवों में का भंग बादर एकेन्द्रियोंके समान है ।
३४२. वनस्पतिकायिक और निगोद जीवोंमें अप्रशस्त स्थावर प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है । शेष सातावेदनीय यदि त्रस स्थावरप्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है और अनुत्कृष्ट अनुभाग बन्धक जीवोंका सब लोक क्षेत्र है। मनुष्यायुका भंग श्रधके समान है । बादर १. ता० श्रा० प्रत्योः सव्वलोगो इति पाठः । २. श्रा० प्रतौ तेङ० वाउ० पजत्ता इति पाठः । १६
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