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अस्तित्व की खोज : सम्यग्दर्शन
अनुभव की गहराई में पहुंच जाते हैं तब उसमें तन्मयता आ जाती है और एक तादात्म्य संबंध जुड़ जाता है । उस तादात्म्यभाव के साथ आप देखें-मैं क्रोध नहीं कर रहा हूं, क्योंकि क्रोध मुझे दुःख देता है। उसे मैं कैसे अपनाऊं ? क्या कभी अपना अस्तित्व अपने-आपको दुःख दे सकता है ? क्या अपना स्वरूप अपने-आपको कष्ट दे सकता है ? 'मैं क्रोध नहीं हैं।' 'मेरी चेतना क्रोध नहीं है।' प्राण की धारा उसके साथ जुड़ रही है और मैं क्रोध बन रहा हूं। मुझे विवेक कहता है कि प्राण की धारा के साथ क्रोध को न जोडं । प्राण की धारा को हटाएं और क्रोध को अपने उपयोग से, अपनी चेतना से, अपने ज्ञान से अलग अनुभव करें । सोचें नहीं, विचार नहीं। यदि सोचेंगे और विचारेंगे तो वह चेतन मन तक नहीं पहुंचेगा । जितना रूपान्तरण होता है वह चेतन मन के स्तर पर नहीं हो सकता। चेतन मन स्थूल होता है । स्थूल मन के स्तर पर रूपान्तरण नहीं हो सकता। रूपान्तरण अवचेतन मन के स्तर पर होता है। उस स्तर पर गए बिना रूपान्तरण नहीं हो सकता । अध्यवसाय का स्तर अवचेतन मन का स्तर है। अनुभव के स्तर पर पहुंचकर आप अनुभव करें--- 'मैं क्रोध नहीं हूं।' 'मैं अभिमान नहीं हैं।' 'मैं लोभ नहीं हूं।' 'मैं घृणा नहीं हूं।' 'मैं राग नहीं हैं।' 'मैं द्वेष नहीं हूं।' यह मेरा स्वभाव नहीं है । यह मेरा धर्म नहीं है। इस गहराई में जाकर आप अनुभव करें और करते चले जाएं । वहां जो शेष बचेगा वह 'मैं हूं।' यह विवेक की पद्धति है। इसे हटाते चले जाओ, काट-छांट करते चले जाओ, तोड़ते-तोड़ते चले जाओ, जो शेष बचेगा, वह 'मैं हूं'। जो शेष बचता है, जिसका विभाजन नहीं होता, वह 'मैं हूं'। इस अनुभव में विवेक जागृत हो जाता है । यही है--सम्यग्दर्शन ।।
जब सधन मूर्छा की गांठ खुलती है तब हमारा विवेक स्पष्ट हो जाता है । इससे स्पष्ट अनुभव होने लग जाता है कि 'मैं कौन हूं ? आज तक हजारों बार यह पूछा जाता रहा है कि 'मैं कौन हूं?' परन्तु यह प्रश्न -सदा अनुत्तरित ही रहा । इस विवेक-प्रतिमा द्वारा उसका उत्तर हाथ लग जाता है । यह स्पष्ट अनुभव होने लगता है कि 'मैं वह हूं'। प्रश्न सदा के लिए समाहित हो जाता है। विवेक करें, किन्तु प्रतिमा होकर करें, आदमी होकर नहीं । प्रतिमा जितनी शांत, स्पष्ट और स्थिर होती है, उसी अवस्था में जाकर विवेक करें । प्रतिमा की भांति शांत, स्थिर, निश्चल होकर करें। अस्तित्व के जागरण में अस्तित्व-बोध की यात्रा में यह विवेक प्रतिमा बहुत
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