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कतिपय महत्वपूर्ण ग्रन्थों के नाम निम्न है:
१. सनत्कुमार चक्री चरित महाकाव्य - जिनपालोपाध्याय रचित
२. खरतरगच्छ दीक्षानन्दी सूची (भँवरलालजी नाहटा के साथ सम्पादित)
३. दादागुरु भजनावली - जिसमें चारों दादा गुरुदेवों के ७०० भजन संग्रहित है ।
४. खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावली
५. खरतरगच्छ पट्टावली संग्रह
६. विधि मार्ग प्रपा- जिनप्रभसूरि रचित ७. जिनवल्लभसूरि ग्रन्थावली
८. धर्मशिक्षा प्रकरण
इन ग्रन्थों का प्रकाशन होने पर भी ५५ वर्ष पूर्व जो मन में अभिलाषा जागृत हुई थी कि खरतरगच्छ का विस्तृत इतिहास, खरतरगच्छ के प्रतिष्ठा लेख और साहित्य निर्माण का कोष, उस भावना को मैं आज तक पूर्ण न कर सका। अन्त में हृदय की उत्कट भावना को भस्माच्छादित न रख सका और योजना बनाकर इस कार्य में प्रवृत्त हो गया । उन पूज्य गुरुदेवों का अन्तरङ्ग आशीर्वाद के कारण ही सर्वप्रथम खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास का प्रकाशन कार्य पूर्ण हुआ, जिसका विमोचन बेंगलौर में उपधान तप के मालारोपण महोत्सव के अवसर पर ८ नवम्बर २००४ में उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी के कर-कमलों द्वारा हुआ। इसी क्रम में खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह का लेखन और प्रकाशन भी २००४ के अन्त में पूर्ण हुआ और ३० जनवरी २००५ शंखेश्वर तीर्थ पर दादाबाड़ी के प्रतिष्ठा के अवसर पर पूज्य मुनि श्री जयानन्दमुनिजी महाराज और विदुषी आर्यारत्न श्री हेमप्रभाश्रीजी के कर कमलों से सम्पन्न हुआ ।
तत्पश्चात् योजना के अनुसार खरतरगच्छ साहित्य कोष का कार्य प्रारम्भ किया । इसमें जिस प्रकार की सामग्री और सहयोग चाहिए था वह मुझे सुलभ न थी । मेरे जीवन के आदर्श और प्रेरक दोनों नाहटा बन्धु इस लोक से प्रयाण कर चुके थे। मेरे द्वारा संकलित साहित्य सूची अपूर्ण थी। मैं चाहता था कि नाहटा बन्धुओं द्वारा संग्रहित नोट बुक भी प्राप्त हो जाती जिसमें मेरा भी सहयोग था । इसके लिए मैं बीकानेर भी गया, , उनके सुपुत्र विजयचन्द के सहयोग से अभय जैन ग्रन्थालय को टटोला किन्तु वह नोटबुक प्राप्त नहीं हुई किन्तु ग्रन्थों की आद्यन्त प्रशस्तियाँ अवश्य ही प्राप्त हुईं। वह नोट-बुक न तो बीकानेर
थी और न कलकत्ता में थी, उनके संग्रह से कहाँ गई ? कह नहीं सकता। मुझे अपने सीमित साधनों के द्वारा ही इस कार्य को पूर्ण करने के लिए बाधित होना पड़ा। ऐसी स्थिति में, सामग्री के अभाव में कुछ स्खलना भी रह जाए वह स्वाभाविक भी है और क्षन्तव्य भी ।
लेखन और सम्पादन-पद्धति
खरतरगच्छ साहित्य कोष को तीन खण्डों में विभाजित किया गया है।
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