Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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४५६६. गुरु पूज रचो रे... ३६७९. गुरुमंदिर आलोयण जीउ लीजइ... ६३१७. गुरु महिर करी... ५०५५. गुरुराजनी मूर्ति... ६०९६. गुरु लब्धिकल्लोल गुणिंद जयउ... ६९९२. गुरु लब्धि गौतमसामी... ६९५७. गुरु वन्दन आये... ६२१६. गुरुवर गुरुवर... ७१२५. गुरुवर तुम्हारी... ६२१७. गुरुवर तुम्हारी... ६२१८. गुरुवर द्वार पे... ६३०७. गुरुवर हमारी... ५५१७. गुरु वाणी गुरु वाणी... ४२८४. गुरुवाणी जग सगलउ मोहीयउ... ७११०. गुला में गोपाल कमल में कमल नैन... ४०९०. गोखे बैठी राजुल गोरी... ३७०२. गौडी गाजइ रे गिरुयउ पारसनाथ... ५०१४. गौडी गौडी जे करै... ६७०३. गौडी पारसनाथ तूं गाजइ... ६७०४. गौडी पारसनाथ तूं वारु... ५३२३. गौडी पुरवर मंडणा गावू... ५०२०. गौडी राय कहो बड़ी वेर भई... ५६१०. गौतम गंगेव सारखौ... ६५०५. गौतम नाम जपउ परभाते... ४०३६. गौतम नाम जपो जयकार... ६१००. गौतम नाम भणउ रे भाई... ३६८६. गौतम लब्धिनिधान काउजी... ३६५५. ग्यानामृत गुणसंयुता... ६६१९. ग्रहपति पुत्र क्रतूत करउ... ७०५५. ग्राम नगर पुर विहरता पूजजी... ६५०९. घड़ी लाखीणी जाइ बे... ६१७०. घड़ी सुलेखइ आज री... ३१४१. घणुं समझायो घर में... ४७१६. घनघोर घटा घन की उनई... . ४७२१. घनघोर घटा घन की उनई.... ४९६९. घर आवो ढोलन परसंग निवार... ३२३१. घर आवौजी सुगुणां री सजनां...
४३५४. घर छोड़ि परदेसि भमइ... ५४९९. घर बैठे गंगा... ६१५१. घरि आयो सिवादेवी लाल... ६९६५. घरि आवि सग्यानी जीवडो... ४९७०. चूंघरी दुनिया ओ बूंघरी दुनिया... ४८२५. चउथउ मंगल निति नमुं... ४३५८. चउमुख तीन त्रिभूमिया... ६६९५. चउमुख वाडी पास जी... ५५८५. चउवीस जिन प्रणमी करी... ३६९१. चउवीसम श्री वीर जिनेश्वर.... ६३८९. चउवीसमा जिनराय.... . ४६५४. चउवीसे जिनवर ना पाय नमूं.. ६६४१. चंदइ कीधउ चानणठ रे... ५२१६. चंद जिम सूरि जिणचंद्र चढती कला... ६११०. चंदला पीऊ नइं वारि रे... ४१८२. चंदा तूं जिण देसि... ४०२१. चंद्रानन जिन सहसफणो... ६८६८. चंदालाइ एक करूं अरदास चंदा... ६४८६. चंपानगरी अति भली हुं वारि... ३९७९. चंपानयरी जगमां दीपती रे... ३४५६. चढते दिवाजै हो... ५४७४. चतुर चकोर सुधाकर... ४४०९. चतुर नर चेतो रे... ५५३६. चतुर नर चेतो रे.... ४२३८. चतुरनसे चउवीसटे... ७०५६. चतुर माणस चित उलसइ रे... ६५७०. चतुर लोक राजइ गुणे रे... ५४७५. चतुर विहारी हो आतम माहरा... ६५०८. चतुर सुणउ चित्त लाइ कइ... ६३९४. चतुर्विध संघ सुणउ हितकारक... ५८४६. चन्द पटधारी हो.... ५०९३. चन्द पटोधर कुशल... ५६७७. चन्द वदन राजुल वदति.... ६८५०. चन्द सूरज वीर वांदण आव्या... ६५११. चन्द्रप्रभ भेट्यइ मंद चंदवारि...
३८०९. चन्द्रसूरि गुरु... | ५४४३. चन्द्रसूरि गुरु...
५८२ Jain Education International
तृतीय परिशिष्ट
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