Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 685
________________ ३७२०. सहुअ धरम मोहे वहउ... ५२३०. सहु धर्मं सिर सेहरौ रे... ६९९०. सहु मिलि सूहव आवउ मनरली... ३१८९. सहेली म्हारा पूजो चिंतामणि पास... ३२४०. सहेली म्हारी आई श्रावण तीज... ३२५२. सहेली म्हारी आयो श्रावण मास... ४२०२. सहेल्यां चालौ पूजण जाह... ४८०१. साइंधण कहे कर जोडी हो व्हाला... ३६२४. सांगानेर विराजे गुरु..... ३४८५. सांचो सद्गुरु सुरतरुजी... ६७३७. सांझां थकां सहु ध्रम करउ... ६८५५. सांझि रे गाई सांझी रे... ४२११. सांभलउ शीतल करि मयाजी... ४२०८. सांभलउ साहिब महाराज... ५९३८. सांभलि गौडी पास रे मनमोहन... ४८७६. सांभलि तुं प्राणी हो.... ४१६२. सांभलि तूं भोला प्राणी रे ६२६१. सांभलि निसनेही हो लाल... ४६८२. सांभलि प्राणी सुगुण सनेह... ६२६३. सांभलि भोली भामिनी रे... ६८५३. सांभलि सनत्कुमार हो राजेश्वरजी... ४३४८. सांभलि हे सखि सांभलि मोरी.... ४९८३. सांम नाम न लयौ... ३२६४. सांवरे सै हारी हारी तज गयो प्यारी... ४१९५. सांवलिया घर आव कि राजल वीनवै हो... | ५६६१. सांवलियो म्हारळ मनहरु... ६८७२. साकेत नगर सुखकंद रे ४०२०. साचउ इक अरिहन्त... ६७३०. साचउ देवतउ ए सामलउ... ६७२८. साचउ देवतउ संखेसरउ... ७०७६. साच शील संतोष... ७०६३. साच साचोरे सद्गुरु जनमिया रे... ५२९६. साचा सुज्ञानी ध्यानी सनत... ५६५२. साचौ सामरौ.... ३४३०. साचौ साहिब निरधारी... ३७६९. सात विसन तूं छांडिरे जीवड़ा... ५२९७. सात विसन नौ संग रखै करौ... ५१४०. साधक साधज्यो रे निज सत्ता... ५७३०. साधक सोई जो मनकुं... ६४७६. साध निमित्त छज्जीव निकाय... ५२२०. साधु आचार सुविचार सखरी... ७१४२. साधुकीर्ति साधु अगस्ति जिसो... ४६६३. साधु चिलातीपुत्र गाईयइ... ४२९८. साधु जी न जइयइजी पर घर एकल्या... ४५८८. साधु वेष में पासत्थों... ६८९९. साधु साधवी श्रावक श्राविका... ६९६६. साधो ऐसा पंथ संभारो... ६६५५. सामलियउ नेमि सुहावइ रे सखियां... ६३९५. सामलिया सुन्दर देहा... ५६६९. सामलिये मारुं मन मोह्य... ५६७३. साम सनेही सामरो... ४८७७. सामायिक ना दोष बत्तीस... ६८६३. सामायिक मन सुद्धे करउ... ३७३५. सामि कइ नामि नवे निधि पाइ... ६७६१. सामि मुंनइ तारउ भव पार उतारउ... ४८८५. सामि सीमंधर मोरइ मन वस्यउजी.. ६८६६. सामि सीमंधरा तुम्ह मिलिवा... ६४६४. सामी विमलाचल सिणगारजी... ४३९७. सामी सुपास सदा सुखदाई... ६९६३. सारद पाय... ५३६८. सारद सद्गुरु पाय... ४७१५. सावण मास घनाघन वास ४०८४. सावण मास सुहावियौ... ४९८४. सास गया पछी क्यूं ही आस... ६३८२. सासण देवत सांभलिए... ६३८४. सासण देहि सांभणिये... ३७१८. सासन नायक सेवीयइ... ३७३६. सासनसुरी तणी परभावइ... ६६७२. साहिब मइडा चंगि सूरति... ४३४१. साहिब वीर जी हो मेरी तनुकि... ४७६९. साहिबा जी सुगुण सनेही पास जी... ४७९१. साहिबा बेकर जोडी वीन... ४९०२. साहिबा श्री जिनकुशल... ६२३९. साहिबा हो पूरण शशिहर सारिखौ... खरतरगच्छ साहित्य कोश ६१५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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