Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 690
________________ पधारो.... ४४९३. हे मन तंज तूं तात पराई ... ५३२६. हे मेरा जीवन.... ३९१३. हे युगप्रधान ७०२०. हेली है सद्गुरु... ५८०३. है सब को स्वार्थ को .... ४९८६. है सुपनौ संसार... ६६९९. हो जब मंइ पास जिणंद जाग... ३१९१. होजी चिंतामणि लागै प्यारो.... ५६२४. हो जिणंद जी.... ४४३१. हो जिणंद जी मोही..... ५९८३. हो जिनवर तुम से कौन धणी.... ४७१०. होजी रथ फेरी चाल्या जादुराई... ६१५२. हो तुम नहीं रे खिलार होरी के..... ६२० Jain Education International ४४२६. हो मुनिवर धन.... ५५७६. हो मुनिवर धन धन... ४९८७ हो रही तातै दूध बिलाई... ३१९३. होरी आई रे होरी आई ..... ३३२८. होरी खेलत प्रभु जी .... ३२५७. होरी खेलूंगी संग मिल्यां सजनां.... ३३४२. होली खेलो भविक ... ३३९२. होरी खेलो भविक..... ४९८८. होरी रे आज रंग भरी रे.... ४८२७. हो वीर काहे छेह दिखायउ .... ६८४९. हो सायर सुत सुहामणा... ५६६२. हो हो रङ्ग रसीला.... ४४००. हो होरी के खिलैया.... For Personal & Private Use Only तृतीय परिशिष्ट www.jalnelibrary.org

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