Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 658
________________ ४१००. तुझ सूरत सुखकरी... ५४०१. तुम अगर मेरे... ६५७४. तुम चलहु सखि गुरुवंदण... ७१२८. तुम तो भले विराजो जी... ४१७१. तुम पूजो श्रीजिन... ५५४७. तु मेरे स्वामी... ६४११. तुम ही स्वामी हो..... ६२०४. तुम हो तारण तरण... . ५०३४. तुम हो दीनबन्धु दयाल... ३१६१. तुम्ह दरसण विण मन मो... ४३१२. तुम्ह पइ हइ ज्ञानी कउ दावउ... ४३१६. तुम्ह सेवो पास जगतधणी... ६३१२. तुम्हारी शरण में... ६३९९. तुम्हारे वांदिवउ मुझ मन... ५७६३. तुम्हे आवो हे.... ६८७६. तुम्हें बाट जोवंता आव्या... ५२४५. तुरत चतुर नर तंबाकू तजौ... ४८०७. तुहि नमो सम्मेतशिखर गिरि... ४२१५. तूं अविनाशी आतम रे... ४४९०. तूं कहा चिन्त करती.... ५६११. तूं छत्रपति जिन धर्म को... ४२५१. तूं तउ धरउ आज अयान... ६५४३. तूं तूठउ द्यइ सम्पदा पूज जी... ५७९५. तूं तो ज्ञान कथा हिय लाय... ४२२३. तूं मेरइ दिल मई... ३४०५. तूं मेरे मन में तूं मेरे दिल में ४४१३. तूं मेरे स्वामी... ६७९५. तूं साहिब हूं तोरंउ... ४४५५. तूंही तूंही ध्यान तुहारो... ३६५७. तू चेतन गुरु भान रे... ६१८५. तू ज्ञान का बादल... ६२४९. तूठा रे पास जिणंद... ४३१३. तू भ्रम भूलउ रे आतम हित न करइ... ६२०५. तू ही जग का रखवारा... ७१२९. तू ही प्रीत... ५४२५. तू ही है मेरा... . ५९१८. तू है दाता मेरो... ५७४५. तें धन जय... ५७७९. तें मन मोसु चोर्या... ४७७६. ते मन मोह्यौ माहरो रे... ४४५६. ते अपनो विरुद श्रीजिनचन्द सूरिन्द को... ५५३३. तेड़ियौ तिण समइ... ६७५६. ते दिन क्या रे आवसइ... ४१०७. ते दिन क्यारे आवसे... ४७८०. ते दिन गिणि स्युं हुंतउ लेखइ... ४४८४. ते मन मोसु चोर्या... ४४९९. ते मूरिख जिन बाउरे... ३३८९. तेरा अमृत प्याला... ५८२५. तेरा आज स्वर्ग... ३३६०. तेरा हूं मैं तेरा हूँ...... ६२०९. तेरी भक्ति देखी... ६३२२. तेरी सूरत से जिन मेरा जुहार रे... ५२४१. तेरे तो प्रताप के प्रकाश... ३९१४. तेरे दर पे खड़ा... ६१८६. तेरे दर्शन को... ५९९८. तेरे दर्शन को जी... ३३६१. तेरे दरशन में... ६१५८. तेवीसम जिन ताहरो जी..... ६१०८. तोरण थी जब नेमि सिधारे... ६६४४. तोरण थी रथ फेरि चले... ४०६३. तोरण पधारउ प्रीतम माहरा... ५००५. तोरण वांदी प्रभु रथड़ो रे वाल्यो... ५६४५. तोरा तोरा हो... ५९७०. त्रिभवण मझतत सारं... ४१५५. त्रिभुवन गुरु... ५१८३. त्रिभुवन नायक ऋषी जिन... ३५६६. त्रिभुवनपति त्रेवीसमा हो जी... ५२५६. त्रिभुवन मांहे ताहरो हो... ४०२७. त्रिभुवन में तिलक तें चाढ़ियऊ... ४८२९. त्रिभुवन राया चौवीसम जिनचन्द... ५४७०. त्रिभुवन सामी हो... ३८८२. त्रिलोकी तलानंद संदोह दाया... ३४४२. त्रेवीसम जिन त्रिभुवन तिलौ... ३५६७. थंभण पास जुहारिये रे लो.... ५८८ Jain Education International तृतीय परिशिष्ट www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only

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