Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 663
________________ ६०३०. नीको नीकउ री... ६०९०. नीको नीको री जिनशासनि ए... ६४४३. नीद्रड़ी निवारो रहो जागता... ४२७४. नीलकमलदल सांउली... .. ६६६७. नेमजी रे सामलियउ सोभागी... ६२४८. नेमजी हो अरज सुणो रे वाल्हा... ४८३६. नेम भणी चाली वांदिवा हो लाल... ४७०४. नेमि कांइ फिर चाल्यो हो... ४७१८. नेमि काहे कुं दुःख दीनउ हो... ४१९४. नेमि कुमर उग्रसेन रे... ६२४७. नेमिकुमर वर वींद विराजै... ५६७४. नेमिकुमर हलधर मिस आए... ५०११. नेमिकुमार खेरे होली रे... ३९४५. नेमि जिणंद दयाल रे... ३९४६. नेमि जिणंदा पुनिम चंदा... ३९४९.. नेमि जिणेसर जग परमेसर... ६६४६. नेमिजी मन जाणइ के सरजणहारा... ६६४९. नेमिजी सुं जउरे साची प्रीतडी... ६६४७. नेमि नेमि नेमि नेमि जपत राजुल... ६६४८. नेमि परणेवा चालिया... ६०७१. नेमि वंदन राजउ चली... ३९४४. नेमिसर जिन जगधणी... ३७२४. नेमीसर पिउरा मानीयइ जु...' ३१९८. नेहरो लगायो सहीयां... ५२५८. नैणा धन लेखु देखु मुख... ६५५३. न्याति चउरासी निरखता रे... ६८८९. पंखि एक वनि ऊपनउ... ५१९५. पंच परमेष्ठि मन सुद्ध... ४७२४. पंच प्रमाद निवारउ प्राणी... ४०१६. पंचम गणधर भाखिया... ४८१८. पंचम प्रवीण वार... ५४६७. पंच महाव्रत आदरइ... ६६०६. पंचमि तप तुम करो रे प्राणी... ४३०४. पंचरंग कांचुरी रे बदरंग तीजइ... ५८०७. पंडित कहो न एक हियाली... ५७९२. पंडित ज्ञान विचार... ७१११, पंडित प्रवीण ज्ञान गहरो समुद्र जेसो... ६५७५. पंथियरा कहिजो एक संदेश... ६२३४. पंथीडा अंदेसौ मिटसै... ६५३३. पंथीनइ पूछू वातड़ी रे.... ४७०५. पंथीयडा कहे रे संदेसडो... . ४१६६. पइहिलो श्री रिसहेसर पणमु... ४२९०. पगि पगि आव्या समरता... ६५९०. पड़िवा जिम मुनि बड़उ साहेलड़ी ए... ४७२८. पड़िवा दुरगति वाटड़ी रे... ४७२६. पड़िवा पहिलै पक्खडै... ४५६७. पटोधर गुरु... ४६४६. पढमक्खर विण सखर... ५४८०. पणमउ री साहब सरब संत... ४१५३. पणमवि पण परमिट्टिपाय पउमावई देवी... ३८९०. पणमिय जिणवर पाय पौम... ५३१७. पणमिय जिनवर पय सिर नामी... ५३८९. पणमिय पण परमिट्ठि... ६७८३. पणमिय पास जिणंद...... ३६४३. पणमिय पासजिणंद चंद... ' ४४५१. पणमिय वीर जिणेसर पाय... ६००४. पद पंकज रे प्रणमी वीर जिणंद रा... ३४१०. पद पंकज सेवइ अहनिसइ... ४३८३. पदम प्रभु जिन ताहरो... ५९३१. पदमहेम गुरु प्रवर सदा सेवक सुख आपै... ७०१०. पदमहेम वाचक वंदइ... ४०५६. पद्मप्रभु जिनवर जगि राया... ५६९१. पद्मप्रभुजी गुण गांवौ... ६६९३. पद्मावती सिर ऊपरि... ६९२८. पय प्रणमी रे जिणवरना शुभ भाव लइ... ४४६१. पर उपगारी जिनवर देव... ३९१५. पर उपकारी दादा... ६२६७. पर उपगारी परम गुरु... . ३८६६. पर उपगारी साधु सुगुरु इम... ५६८५. पर उपगारी हो... ६४२९. परचा जग सगले... ६७२९. परचा पुरइ पृथ्वी तणा... ५०२९. परणामी परणांम तै.... | ४२४३. परतखि पास अमीझरइ... खरतरगच्छ साहित्य कोश ५९३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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