Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 672
________________ ५४१४. मेरी अरज सुणीजे... | ४३३२. मेलिज जमक सब गावा तरसइ... ५०१८. मेरी अरज है अश्वसेन लाल सूं... ५५१९. मैं आया मैं आया... ६४७५. मेरी जीयु आरति कांइ धरइ... ६१९३. मैं कुशल सूरि गुरु... ६३११. मेरी नाव करो.... ३२६१. मैं चतुर न कीनी चोरी रे... ३२८९. मेरी राय चेतन नै सुध न लई... ३१७८. मैं चरणन को चेरो प्रभु तेरो... ६३३१. मेरी लगीय लगन प्रभु पास... ४६०४. मैं तेरी प्रीत पिछानी हो प्रभु... ६३४१. मेरी लगीय लगन प्रभु पास... ४८९९. मैं तुमची बलिहारी... ३३६६. मेरे कुशल गुरु... ६४२४. मैं निरख्यां गुरु... ३१७५. मेरे चिंतामणि के चरण कमल युग... ५५०२. मैंने तो तेरे द्वार... ६२८७. मेरे जुगवर... ४५६८. मैं बलिहारी गुरु... ३६५८. मेरे तुम्ह हो स्याम... ७११२. मै वंदन जिस दिन करुं पल पल वारुं प्रान... ६४१०. मेरे दादा कुशल... ४४०२. मैं वारि जाऊँ... ५४२९. मेरी नैया को... ४४०३. मैं वारि जाऊँ... ४११०. मेरे पारस प्रभुजी के रंग मंडप माहि... ४४०४. मैं वारि जाऊँ... ५९२०. मेरी पीर हरो... ३३६७. मैं सीस नमाऊं... ४०३२. मेरे मन चाल सिद्धचल जाऊं... ५४२०. मैं हूं तेरा बालक... ३४०१. मेरे मन तूं ही ऋषभ जिणंदा... ६१८९. मै हूं दुखिया... ४४७५. मेरे मन मई वसिए.... ६६५१. मोकुं पिउ बिन क्युं सखि रयणि विहाइ... ४४९६. मेरे मन मान्यो हो पास... ४९००. मोकुं शरण तिहारा... ३१७६. मेरे मन मिंदरियै प्रभुजी पधारे... ६८१३. मोक्ष नगर म्हारं सासरुं... ४३३१. मेरे मोहन अब कुण पुरी बसाइ... ६४२५. मोतीड़े तूठा मैं... ६३४२. मेरे वामा के लाल तुम... ४८४१. मो पइ कठिन वियोग की.... ३२१०. मेरे सद्गुरु कुशलसूरीसर... ४२२१. मो मन अधिक उमेद जी हो... ३६३३. मेरे होउ सहाई... ५६२३. मो मन मान्यौ... ४४८६. मेरे हो नेमिजिणंद सुप्रेम... ५४८२. मो मन वीर सुहावै... ४४७९. मेरो नेमि रङ्गीलो आवइ... ६४३१. मोरा पास जिनराय... ३१७७. मेरो पास जिणंद जयो... ४७७७. मोरा लाल अंग सुरंगी अंगीया... ३२४२. मेरो पिया मेरे संग नहीं... ६८३१. मोरा साहिब हो श्री शीतलनाथ कि... ३१९९. मेरो पिया मेरो कह्यो ही न मानत... ५८७१. मोरी अरज सुनो... ५७४८. मेरो मन जिनवर सुं लीनो... ४२७१. मोरी बहिनी हे बहिनी म्हारी... ६१६१. मेरो मन बस कर लीनो... ४७५८. मोरी वीनती एक अवधारउजी... ५६६६. मेरो मन मोह्यो नेमि गीत... ६४५४. मोरं मन अष्टापद सुं मोह्यं... ५६४९. मेरो मन मोह्यो हो... ५५४३. मोहन कीयो रे दगा... ४४९२. मेरो मन श्याम भजन... ५६४०. मोहन जान आवत देखी... ६३३२. मेरो मन हर्यो प्रभु पास सांवरे... ६०४९. मोहन नेमि प्रेम गेहलि... ६३४३. मेरौ मनरौ हर्यो प्रभु पास सांवरे... ५६७२. मोहन नेमि मिलावइ... . ४५६३. मोहन मूरति हो प्यारी जिनजी ताहरी... | ४४८०. मोहन लाल आवत देखी री... ६०२ Jain Education international तृतीय परिशिष्ट www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only

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