Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 682
________________ ३८४५. संतौ सगतै मांडी पेट भराई... ६०२१. संपति करण सदा सरसति... ४६४४. संपत्ति पूरै सेवकां... ४०७८. संभव जिनवर सारिखौ... ३८९६. संभवनाथ नमूं... ३६५४. संवत दस सय असीयइ पाटणइ... ४२७०. संवेग रस मांहि झीलतउ... ५१९९. सकति काइ साधना... ३६७३. सकल अजितजिन भलउ... ५१५८. सकल कहीजै सरसती माई.... ५२२८. सकल गुण जाण वखाण मुख सरसती... ६८१६. सकल तीरथ मांहि सुंदरु... ३५१०. सकल देव समरु अरिहंत.... ३५००. सकल बुध परवीन सरस हे... ४४५८. सकल भविक जन सांभलो रे... ४९२१. सकल भविक जन सांभलौ... ४७६५. सकल मंगल सुख संपदा रे... ४९४९. सकल मनोरथ सफल करूं... ५११२. सकल वस्तु प्रतिभास भानु निरमल... ५२३६. सकल शास्त्र सिद्धान्त भेद... ४४२९. सकल सदा फल पुरण होए... ५५८२. सकल सदा फल पूरणो... ४०४०. सकल समीहित आपइ... ३७६०. सकल सारद तणा पाय प्रणमी करी... ३१८८. सकल सिंघ सुखदाई... ४९५०. सकल सिरि विमल जिण वंदिय... ४८०५. सकल सुरासुर सेवइ पाय... ५६१६. सकल सूरिसर पय.... ६७२७. सकलाप पार्श्व संखेसरउ... ६७३२. सकलाप मूरति सेरीसइ... ६१२१. सखरी री वालिहित मोहि वेसासी... ५८०१. सखि आदि जिणंद को... ६६६२. सखि आयउ श्रावण मास... ६६१०. सखि चालउ हे सखि चालउ हे... .. ६५५८. सखि जिनसागरसूरि साचउ... ३४६६. सखि देख्यउ रे सुपनउ मई आज... ४२९१. सखि भोजिग भाट चारण... ६६५८. सखि मोउ मोहन लाल मिलावइ... ५६७५. सखि मो मन मोहन... ३७०५. सखि मोहि धरि उछरंग हे... ४२१४. सखियन सुंराजुल कहै... ६६५४. सखि यादव कोडि सुं परवरे... ५७००. सखिरी आज अधिक सुख पायो... ५७६७. सखि शोभति शान्ति जिणेसरु... ४६७१. सखी री आज सफल जमवारउ... ४४८१. सखी आज सबै वंछित फलीया... ४३४९. सखी आणुं हे नालेर... . ३९५४. सखी पर्व पर्युषण आव्या... ७०५१. सखी मोरी करी सिणगार हे... ५७३२. सखी आज मैं वंछित.... ५२५२. सखी री ऋतु आई सावन की... ६२८६. सखी री गुरु की... ४८४३. सखी री घोर घटा घहराई... ४८४२. सखी री चन्दन दूर निवारि... ४७६६. सखी री भेट्यां मई जिनवर... ४८४८. सखी री विमलाचल जांणु जइयई... ६१११. सखीरी सांभलि हे तूं वाणी... ५७०७. सखी रे श्री जिनकुशलसूरि... ३९१७. सखी लोद्रपुरो रलीयामणो... ४१८६. सजि सजि सोल शृंगार हे सखि... ५७१७. सजी वेश अरीसां तणइ... ४५०४. सजी वेष अरीसा तणइ... ४६३९. सतजुग मां बलराजा थयउ... ३२८२. सत मत छोडी सुगुण नर... ४९९७. सत मत साई संवत... ५७८९. सतीय सूधीं सुभद्रा सती... ५२४८. सत्यगुरु कहि सुगुरु रा... ६०१४. सदा नीलगात्रं... ६०५८. सदा माहरो... ४७६७. सदा विराजइ सामि संखेसरो रे... ४८०६. सदा विराजै सांम संखेसरै..... ६७३४. सदा सयल सुख जाणी संपदा हेतु जाणी.. ५०९७. सदा सहाइ कुशल... | ६१७४. सदा सुखकारी अचि ६१२ Jain Education International तृतीय परिशिष्ट For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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