Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 673
________________ ५१८२. मोह बसै केइ मानवी... ५०७९. युगप्रधान... ६९८३. मोह मदिरा माता... ५८९५. युगवर श्री जिनचन्दजी... ४३२६. मोह महा बलवंत.... ५९०६. युगवर श्री जिनचन्दजी.... ४७५९. मोहन मूरति जोवतां रे... ६३१३. युगादि प्रथम जिणंद... ४८५९. मोहन मूरति शान्ति जिणेसर... ७०३७. ये है वीर जिणंद री पावापुर में... ३३२२. मोहि एक भरोसो... ६३९२. रंग जागउ जी मोहि जिनसिंहसूरि... ५९८७. मोहि कबहु तारोगे दीनदयाल... ६७६६. रचति वेष करि विशेष... ६३२७. मोहि तारो सामि भावसिंधु तै... ६०६०. रण नमूं श्रीवीर तणो... ५००८. मोहि प्रीयु प्यारे प्यारा.... ५२१२. रतन पाट प्रतपै... ५६८१. म्हांको साहिबियौ... ५२९१. रतन में जैसे हीर... ४४६८. म्हांको साहिबियो प्रभु सांचो... ४८७०. रयणि खाणि नहीं काय... ६०१२. म्हाने वांछित... ३५७६. रसना सफलभइ... ३४०८. म्हारां पूज्यजी हो श्रीजिनचन्द्रसूरि... ५६५०. रसरङ्ग रमइ... ४६३०. म्हारा साहिबा रे सोरठ देश... ४८३७. रसिक हींडोल राग... ४१४६. म्हारां साहिब हो श्रीजिनकुशल... ४९८१. रसियो मारु सौतन रे जाय हेली... ३३६८. म्हारा प्राण... ३७४४. राउल श्री भीम इम कहइ जी... ४७६०. म्हारा मनडु मोह्यउ पासजी.. ४५१८. राग न द्वेष करो मत को... ४६१३. म्हारा मन ना मान्यारे साहिबा.... ५५६२. राग न द्वेष करौ मन कोई... ४७६१. म्हारा साहिबा सुणि मोरी वीनती... ५०२५. राजगृही उद्यान में सखि समवसरण... ६१७६. म्हारा सेंण वालो... ६८२५. राजगृहीनउ विवहारियउ रे... ६८१५. म्हारी बहिनी हे, बहिनी म्हारी सुणी एक...| ५२७३. राजग्रही में गोचरी.... ४३८९. म्हारे भलै रे उग्यो घाड़ो आज नो रे.... ६७४६. राज तणा अति लोभिया.... ३२९१. म्हारे हरष सै आई हो री...: ३७४८. राजनगरि गुरुचरण भेटिवा... ३३६९. म्हारे हृदय लिख्या... ६८०१. राजमती मनरङ्ग चाली जिण... ४६१४. म्हेतो साहिबां रे चरणे आया... ३५४१. राज श्री जिनदत्तसूरि... ५९११. म्हें तो सेवक दादा... ४०५५. राजिमती कहइ ए सखी... ३३७०. हें तो सेवरा... ५६६७. राजिमती राणी बोलइ... ५६५५. यदुपति रंग रस खेलई री... ४७०६. राजुल कहे रागइं भरी सनेही... ६७९९. यदुपति वांदण जांवता रे... ५२५३. राजुल कहे सजनी सुणो रे... ३९१२. यह आज जयंति है... ६८०२. राजुल चाली रङ्गसु रे लाल... ३२३२. या अलवेली को रूप अनोपम... ५०८५. राजुल नेम भणी काहइ... ३१७९. या जिनराज सो देव नहीं... ४७०७. राजुल वीनवे हो राजि पुण्यइ में... ५२२५. यात्रा ए वडली जास्यां... ४२०५. राजे फलवर्द्धि राजीयो... ३९९८. यात्रीड़ा भाइ श्रीसिद्धाचल भेट्यो... ५२१९. राजै खरतरगच्छ राजवी... ५१११. यादव कुलमण्डण नेमिनाथ जगनाथ... ५२०३. राजै धुंभ ठौर ठौर... ५३४९. यादव मन लागो... ५२७६. राडद्रइ महावीर विराजै... ६६५२. यादववंश खाणि जोवतां जी... ४५१९. राडिद्रहे प्रभु भेटीये... . खरतरगच्छ, साहित्य कोश ६०३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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