Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 656
________________ ५८३१. जिनदत्तसूरि गुरु के... ४३७१. जिन मंदिर जयकार ऐसे... ४३७२. जिन मन्दिर जयनगर... ५६२५. जिन मूरति जिन... ५७५१. जिन मोहे दीजिए कछु कछु दान... ५४६६. जिनराउ श्रीमुख उपदिसइ... ३५२७. जिनराज नाम तेरा... ३४२८. जिनराजसूरि पाटोधरु... ६४९३. जियुरा तूं मकरि किण सुं रोस... ६६०२. जिवड़ा जाणे जिण धर्म सार... ४००२. जिवड़ा ध्यायइ अरिहन्त... ४८१३. जिनवर अब मोहि तारउ... ६३३७. जिनवर चरण शरण मै रम रह्यौ... ६०६७. जिनवर जगगुरु मन धरि... ६६१८. जिनवर जे मुगतइ गामी... ४५५५. जिनवर जेसल जुहारियै.... ४६७२. जिनवर पूजउ मेरी माई... ६५१०. जिनवर भत्ति समुल्लसिय. ४४७२. जिनवर सफल दरस थयो... ३४३३. जिनवाणी प्रणमी करी... ५४७१. जिन विनु देव न कोई... ७१२७. जिन शासन के... ६१७७. जिनशासन शिणगारा... ६५५०. जिनसागरसूरि गच्छपति गिरुयउ... ६५५१. जिनसागरसूरि गुरु भला ए... ७०४८. जिनसागरसूरि चिर जयउजी... ६५७२. जिनसिंघसूरि की बलिहारी... ५२३३. जिनसुखसूरि सुज्ञानी... ७१२०. जिसौ भाव जोगी जती जोग तत्त जाणंतौ... ४१८३. जिहां सुमन रूप अनूप मन्दिर ४२५०. जीउ रे चाल्यउ जात जहान... ५७५४. जीउ रे तु चतुर सुजाण... ३१५८. जीया रे चितामणि जपले... ३२०३. जीया रे तजीयै जंजाला... ३५६५. जीरावलै जिनराजजी ललना... ३७१३. जीव कछु बूझयइ रे... ४६६१. जीवड़ा कीजे रे धरम सुं प्रीतड़ी... ६६०३. जीवड़ा रे जिन ध्रम कीजियइ... ६८०५. जीव जपि जपि जिनवर अन्तरयामी...' ६६३०. जीव तणी हिंसा करइ... ६५९५. जीव नइ कर्म माहो मांहि सम्बन्ध... ३९८२. जीवन मारा तेवीसमा जिणचंद... ४२५७. जीवन मेरे यहु तेरउ कउण ३९६०. जीवन म्हारां तेवीसमा जिणचंद.... ६५९६. जीवन प्रति काया कहइ... ६९९९. जीव मेरा हो क्युं तजि जात... ५५२६. जीव रे जिन चरणे... ४४६४. जीव रे तूं चेत... ३६८९. जीवन विचारी नै करउ रे... ६९८७. जीव विणज विधि ऐसी तूं जानि... ५४६५. जीव विमासिउ निज मनइ रे... .. ४६१९. जी हो आज मनोरथ माहरा...' ४०३०. जी हो आदिम आदि... ५५६३. जी हो ऋषभ प्रभु खेलइ होरी... ५८०५. जीहो एक पुरुष दिसे इसो... ४३५७. जी हो कूड कपट तिहां केलवी... ३७२९. जीहो त्रिभुवनमइ जस ताहरउ... ४२८१. जी हो धन वेला धन सा घड़ी... ३४४१. जीहो पंथी कहि संदेसडउ... ३३३६. जी हो भाव धरी... ३७२१. जीहो महीयलि महिमा सांभलि... ६६२९. जी हो मिथिला नगरीनउ... ४८१५. जी हो राजगृहपुर एकदा जी... ४१७०. जी हो श्री जिन... ४३५१. जी हो सोहम इंद प्रसंसियउ... ७१०८. जुग में नारायण जती सुरवृक्ष तणो सरूप... ३२०८. जुगवर जग जयो... ५१६१. जुगवर श्री जिनचन्द नमि कवियण... ६१७१. जुरि आएस वसंत... ४९९३. जूआ रस धन कू चहै... ५२७४. जेठ तपते तपत जीव जगरा जिके... ६७६७. जेण परुविउ भेय... ३७७२. जे मइं पाप किए परमादइ... ३७१५. जेसलगिरि रलीयामणउ... तृतीय परिशिष्ट ५८६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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