Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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३६३१. कुशल गुरु दरसन...
६९८८. केसरचन्दण किर अगर कपूरभर. ५४९३. कुशल गुरु दादा...
३८०१. केसरिया केसरिया... ५४९४. कुशल गुरुदेव...
५९९०. केही गल्ला कत्थीया... ६१३७. कुशल गुरुदेव के दरसण...
४९६६. कैउ मरड़ता स्यानैं हीड़ौ छौ... ४५८४. कुशल गुरुदेव. है...
३७८९. कैसे कैसे अवसर में गुरु... ४१६८. कुशल गुरु ध्याइये...
५३२९. कैसे कैसे गुरु गुण... ५२०६. कुशल गुरु नामै नवनिधि पामै..
३२५९. कैसे समझाउं सहीयां जदपति... ५९१७. कुशल गुरु पूरो...
३३५५. कोई देख्यारे सपने... ५८५८. कुशल गुरुमइ...
५३६९. कोउ धन कलि फिरउ परदेश... ४५८५. कुशल गुरुराज जय... .
५५१६. कोई नहीं दादा... ५३४३. कुशल गुरु हम वीनती...
६११२. कोई भूलउ मन समझावई हो... ३३५३. कुशल छोगालो...
४९६७. कौन किसी को मीत जगत में.... ५८१५. कुशल थुम्भ गडाले...
५६५८. क्या करी पशुवन छोड़ाया.... ३४९८. कुशल नामे संकट दूर...
५७७२. क्या कोई कीर्ति आपइ... .. ६९५३. कुशल भयो नमतां जिनकुशल... ४५७७. क्या है अपूर्व दर्शन... ३६६४. कुशल सूरिंद गुरु...'
७००८. क्यूं गये गुरु दिल तोड... ६४१८. कुशल सूरिंद गुरु...
६४७०. क्यों न भये हम मोर... ४५६५. कुशलसूरिंद गुरु ध्यान...
६४९२. क्रिया करउ चेला क्रिया करउ... ६४१९. कुशल सूरिंद सुखकारी...
३९२३. क्रोध म करसो... ५८२७. कुशलसूरि गुरुदेव...
६५००. क्लेशोपार्जितवित्तेन.... ५८२८. कुशलसूरि गुरुवर को...
४१८१. क्षमता सागर जुगवर सांभलउ... ६४२०. कुशल सूरिंदा गुरु...
६४९४. खंदक सूरि समोसस्या रे... ३२०५. कुशलसूरिसर ध्यावो रे...
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५४२३. खड़े हैं द्वारे.... ३३०६. कुशल सूरीन्द... .
५२३९. खड्ग...... लाराखेसि...... ५०९२. कुशल सूरींद...
५०७४. खम्मा मारा ज्ञानी... ३३५४. कुशल सूरीन्द गुरु...
४०६६. खम्भा माहरा... ५४९५. कुशल सूरीसर...
५२२७. खरतरगच्छ जाणे खलक... ३६५६. कुशल सूरीसर सेविये...
५२०१. खरतरगच्छ जाणै खलक... ४९६५. कुसल सुमति अति वैरनि नावै... ४९३७. खरतरगच्छ युवराजियउ... ६६७०. कृपा अमूलिक कांचली रे...
४६१८. खरतर वसही आदि जिणंद... ५९७२. कृपा करौ मै गौडी पास...
६९७९. खुद खांन पिछाण्या... ६७६४. कृपानाथ तई कुणहू नूधर्यउ री... ६९२५. खेलइ नेमि मुरारि... ४६७३. कृपानिधि अब मुझ महिर करीजो... ५६५४. खेलति प्रभु नेमि कुमार... ६३५३. कृपानिधि वीनती अवधारौ...
४५१७. खेलति है होरी हो... ५२६९. केई तो निकट वाट लंघत..
५६८०. खेलती है होरी हो... ३६६५. केई तो समस्त न्याय ग्रन्थ में दुरस्त देखे... | ४६९२. खोजइ कहा निरंजन बोरे... ६४३९. केवलज्ञानी नई निर्वाणी... . । ४९६८. खोट सयाने कहा कहि समझावै...
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तृतीय परिशिष्ट
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