Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 639
________________ १६१५. यकः संसाराम्भोनिधि... १०६०. यच्छनोर्जयकारि... १४१६. यत्पारणासु प्रथमासु हेम... २४५९. यत्राल्पेनापि कालेन त्वद्भक्तेः... २०७३. यदंघ्रिनमनादेव... १३५४. यदानने नूतनरत्नदर्पणे... १५३९. यन्महिमाकृतसेकैः... ७२६. यन्महिमाकृतसेकैः पल्लवितुं भुवन... ६५६. यं सततमक्षमालोपशोभितं... २१७९. यस्तीर्थकृत्खरतरामल... २०९९. यत्तीर्थराज त्रिशलात्मज... १३१७. यस्य क्रमो विलसमान... १३१५. यस्याङ्गनिर्यदतिसान्द्रविसारिशील... ४६६. यस्याभवन्मरुधरस्थसुरम्यचूण्डा... १६८. युगपदर्बुदशैलशिरोमणी... ' १५३. युगादितीर्थशङ्करं... ६६५. युगादौ जगदुद्धर्तुं... १००१. यं ज्ञानामृतसारः... ' १४७९. योगात्मनामप्यपरं परस्परं... १३६२. योऽचीचलद् दुष्च्यवनोरसि... ९२३. यो दृष्टः स्मरणं... ८९६. यो नतृनिव सेवकानिव सदा... ८९३. यो भूमिपृष्ठे... ६२९. यो मारुदेवो नृपनाभिसूनु... -९१८. रङ्गद्वैराग्यवासनातिशयसमादृत... . १५५६. रयंणगब्भाइ जिष्णरयण... २४६८. राजर्द्धिवृद्धिभवनाद्... १४९१. राजीवबन्धुरिव यस्य जिनस्य जीवा... २७३८. रिसहजिण अजियजिण... . ९०४. रिसहजिणेसर जो जयउ... २८६५. रुचितरुचिमहामणिस्वर्णदुर्वर्ण... १४४३. रुचिमंडलमण्डनदिग्वलयं... १५५०. रुचिमण्डलमण्डितदिग्वलयं... २०७५. रेखाव्याजादेकाब्जे.... ८९९. लक्ष्मीसौभाग्यविद्या सुतनयललना... १५६१. लच्छीलीलाभवणं... १६३४. लसण्णाणविन्नाणसन्नाणगेहं... १४८५. लसत्पङ्कजातोदनिश्वाससारं... १२६५. लसद्गुणैः संस्तविताः... १८. लावन्नामयकलियं सोहग्गविलास... १५१२. लोकनाथ जगतीविलोकना... १४७७. लोकमनोमनदैवतपादप... २०५१. लोयालोयविलोयण... १३०८. वंदामि नेमिनाहं... १२१८. वंदिय नन्दियलोयं... १४४४. वः सहे न पणायितुं... १६३५. वन्दामहे वरमतं कृतसातजातं... १५१३. वन्दारुदेवेशसिरः किरीट... ११६४. वन्दे केवलनाणिं... २००२. वन्दे महोदयरमा... १४८६. वन्दे सुभाववसुसन्धकरं शमोकं... ९४९. वन्दे सुहम्म सामि... ९२२. वन्दे सूरिवरं... १४४५. वन्द्याय नमो निस्सीमशमणे... २८८९. वरकेवलदसणनाणधरा... १५४. वरमुत्तियहारसुतार... १६१७. वरसंवरसंवरसं... २६००. वरसोलां भलागूदवडा खजूर... २५९४. वराणं वरणं रणं रणरणं... ५९७. वर्द्धमानजिनशिष्यशेखरं.. २१०३. वर्द्धमानमतिमानसम्पदं... १६५२. वर्माङ्गजं जिनपतिं गुप्त... ६४१. वसहो रिसहस्स भवे लंछण... २६२२. वाग्देवते भक्तिमतां... . १५७१. वाञ्छितदानसुरद्रुम तुभ्यं... १५२९. वारिदेयं परमं विमायं... २३५५. वासवश्रेणिकोटीरकोटि... २३५७. वासुपूज्य वसुपूज्यप्रमोद... २०९५. विकचकमनीयतपनीय... १४४६. विजयस्व जगन्नाथ परमात्मन्... १६३६. विज्ञानविज्ञान नुवन्ति के त्वां... १४५९. वितनुते तनुते तनुतेश्वर.... १४३७. विदिता निखिलभाव... २९६२. विद्यमानं जिनं वन्दे... खरतरगच्छ साहित्य कोश Jain Education International ५६९ www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only

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