Book Title: Khartargaccha Sahitya Kosh
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 610
________________ ७४६३. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, दादागुरु- भजनावली, सम्पादन, संग्रह, स्तवन गीत, सन् १९९३, मु., प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ७४६४. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, देवतामूर्तिप्रकरण, सम्पादन, वास्तुशास्त्र, संस्कृत, सन् १९९९, मु., प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ७४६५. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, धर्मशिक्षा प्रकरण, सम्पादन, उपदेश, संस्कृत, सन् २००५, मु., प्राकृत भारती अकादमी, एम. एस. पी. एस. जी. चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर ७४६६. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, नन्दीसूत्र प्रभा टीका, सम्पादन, आगम, संस्कृत, सन् १९९७, मु., रा.प्रा.वि.प्र., जोधपुर ७४६७. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, नल - चम्पू- टीकाकार महोपाध्याय गुणविनय एक परिचय, लेखन, इतिहास, हिन्दी, सन् २००३, मु., प्राकृत भारती अकादमी, एम.एस.पी. एस. जी. चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर ७४६८. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, इतिहास, हिन्दी, सन् १९८८, मु., कुशल संस्थान, जयपुर ७४६९. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, नालडियार, सम्पादन, सन् १९९०, मु., प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ७४७०. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, नेमिदूतम् सटीक, सम्पादन, काव्य, संस्कृत, सन् १९४९, मु., सुमति सदन, , कोटा ७४७९. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, प्रतिष्ठा लेख संग्रह::- प्रथम भाग, सम्पादन, अभिलेख, संस्कृत, सन् १९५३, मु., सुमति सदन, कोटा ७४७२. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, प्रतिष्ठा लेख संग्रह भाग - २, सम्पादन, अभिलेख, संस्कृत, सन् २००३, मु., प्राकृत भारती अकादमी, एम. एस. पी. एस. जी. चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर ७४७३. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, प्रवचन सारोद्धार भाग १ - २, सम्पादन, प्रकरण, प्राकृत - हिन्दी, सन् २०००, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ७४७४. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, भावारिवारण पादपूर्त्यादि स्तोत्र संग्रह, सम्पादन, स्तोत्र, संस्कृत, सन् १९४८, मु., सुमति सदन, कोटा ७४७५. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, महावीर षट् कल्याणक पूजा, लेखन, पूजा, हिन्दी, सन् १९५६, मु., सुमति सदन, कोटा ७४७६. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, महोपाध्याय समयसुन्दर, लेखन, इतिहास, हिन्दी, सन् १९५६, मु., सुमति सदन, कोटा ७४७७. विनयसागर महो० / जिनमणिसागरसूरि, मिले मन भीतर भगवान्, अनुवाद, हिन्दी, सन् १९८५, मु., प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर 540 Jain Education International खरतरगच्छ साहित्य कोश For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692