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के वे विशेष मर्मज्ञ थे। महाराज के इस प्रकार के विशेष ज्ञान की सारे चित्तौड़ में खूब प्रसिद्धि हो रही थी। अन्य मतानुयायी ब्राह्मण आदि सभी लोग अपने-अपने सन्देहों का निवारण करने के लिए महाराज के पास आने लगे। जिस-जिस को जिस-जिस शास्त्र में सन्देह उत्पन्न होता था, महाराज सब शास्त्र विषयक यथार्थ उत्तर देते हुए सब की शंकाएँ दूर करते थे। अब तो धीरे-धीरे श्रावक लोग भी कुछकुछ आने लगे। सिद्धान्त-वचनों को सुन कर और तदनुसार क्रिया को देखकर साधारण, सङ्घक प्रभृति श्रावकों ने सन्तोषपूर्वक वाचनाचार्य जिनवल्लभ गणि को गुरु के रूप में स्वीकार किया। गुरु उपदेश से प्राप्त की हुई ज्योतिष विद्या के बल से जिनवल्लभ गणि जी को अतीत तथा अनागत (भूत-भविष्य) का पूर्ण ज्ञान था। एक समय साधारण नामक एक श्रावक ने महाराज से परिग्रह-परिमाण व्रत के निमित्त प्रार्थना की। गुरुजी ने व्रत ग्रहण की उसे आज्ञा दे दी और पूछा-"कितना परिग्रह परिमाण लेना चाहते हो?" साधारण बोला-"महाराज! सर्व संग्रह २० हजार का करूँगा।" फिर गणि जी ने कहा-"यह तो बहुत थोड़ा है, और अधिक करो।" गुरु जी की आज्ञा से परिग्रह परिमाण एक लाख का किया। गुरु जी के प्रभाव से साधारण श्रावक के लक्ष्मी की वृद्धि होने लगी, लक्ष्मी के बढ़ने से सारे संघ की सहायता करने लगा। साधारण श्रावक की तरह अन्य श्रावक भी महाराज की आज्ञा में प्रतिदिन अधिकाधिक प्रवृत्त होने लगे।
१६. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को श्री महावीर भगवान् का गर्भापहार कल्याणक आता है। उस दिन जिनवल्लभ गणि जी ने सब श्रावकों के सामने कहा-"यदि देव मन्दिर में जाकर भगवान् के समक्ष देव वन्दना की जाय तो अत्युत्तम हो। पाँच कल्याणक तो हैं ही जो सभी तीर्थंकरों के नियमित हमेशा होते हैं, परन्तु उनके अतिरिक्त भगवान् महावीर देव का छठा भी कल्याणक गर्भापहार है क्योंकि (पंच हत्थुतरे होत्था साइणा परिनिव्वुए) इस सिद्धान्त-वाक्य से इसका होना स्पष्ट सिद्ध है। यहाँ पर कोई विधि-चैत्य तो है नहीं। इसलिए चैत्यवासियों के मन्दिर में चलकर देव वन्दनादि धर्मानुष्ठान करें।" तदनन्तर श्रावकों ने कहा-"भगवन् ! यदि आपकी यह सम्मति है तो ऐसा ही करें।" फिर सब श्रावक स्नान कर के पवित्र वस्त्र पहन कर पूजा की पवित्र सामग्री लेकर गणि जी के साथ मन्दिर के लिए रवाना हुए। जिस मन्दिर में उनको जाना था उसके मुख्य द्वार पर बैठी हुई चैत्यवासिनी आर्या ने श्रावक समुदाय के साथ आते हुये गुरु जी को देखकर पूछा-"आज के दिन कौन सा विशेष पर्व है?" किसी ने उत्तर दिया कि-"वीर गर्भापहार नाम के छठे कल्याणक के निमित्त पूजा करने के लिये ये सब लोग आ रहे हैं।" उस आर्या ने विचार किया-"आज तक किसी ने भी यह छठा कल्याणक का पर्व यहाँ नहीं मनाया। ये लोग ही आज पहले पहल नये रूप से इस पर्व को मनायें यह युक्तिसंगत नहीं है।" ऐसा निश्चय करके वह साध्वी द्वार पर आड़ी पड़ गई
और उन आगन्तुकों से बोली-"मेरे जीते जी आप लोग मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकते।" उसका इस प्रकार दुराग्रह देख कर वे मन्दिर में नहीं गये और श्रावक संघ के साथ वापस अपने स्थान पर चले गये। बाद में श्रावकगण कहने लगे-"यहाँ श्रावक लोगों के बड़े-बड़े मकान हैं। उनमें से किसी एक मकान पर चतुर्विंशति जिन पट्टक को रखकर देववन्दना आदि समस्त धर्म कार्य को किया
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only
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