Book Title: Khartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 462
________________ किया। सं० १९८१ वलसाड़ चातुर्मास करके नंदुरबार पधारे । आपके उपदेश से नवीन उपाश्रय, प्रभु प्रतिष्ठा, ध्वजदण्डारोहणादि हुए। सं० १९८२ में व्यारा में उपधानादि हुए। टांकेल गाँव में मन्दिर व उपाश्रय निर्मित हुए। सं० १९८३ में सामटा बंदर में मन्दिर प्रतिष्ठा और सं० १९८३-८४ का चातुर्मास बम्बई में किया। उपदेश देकर घोलवड़ में मन्दिर व उपाश्रय निर्मित करवाया। सं० १९८५ सूरत, १९८६ कठोर में चातुर्मास किया। तीन महीने तक आपने चार और पाँच उपवास कर एक-एक पारणा करने की कठिन तपस्या की। सायण और सूरत में विचरण कर सं० १९८७ में दहाणु चातुर्मास किया। बोरड़ी पधार कर उपाश्रय के काम को पूरा कराया। फणसा में उपाश्रय व देहरासर बनवाये। गुजरात में स्थान-स्थान पर विचरण कर विविध धर्म कार्य सम्पन्न कराये। मरौली में उपाश्रय बनवाया। खंभात दादावाड़ी में चारों देहरियों का जीर्णोद्धार होने पर प्रतिष्ठा १९८८ ज्येष्ठ सुदि १० को करवायी। कटारिया गोत्रीय पारेख छोटालाल मगनलाल ने प्रतिष्ठा, स्वधर्मीवात्सल्यादि में अच्छा द्रव्य व्यय किया। मातर तीर्थ की यात्रा कर सोजित्रा पधारने पर मणिभद्र वीर की देहरी से आकाशवाणी के अनुसार खंभात पधार कर माणेक चौक के उपाश्रय स्थित मणिभद्र देहरी के जीर्णोद्धार का उपदेश दिया। सं० १९८९ फाल्गुन सुदि १ को जीर्णोद्धार सम्पन्न हुआ। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महोदयमुनि को दीक्षा देकर गुलाबमुनि का शिष्य बनाया। अनेक गाँवों में विचरण कर अहमदाबाद के संघ की विनती से खंभात पधार कर कंसारा पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा कराई। अहमदाबाद में दादा जयन्ती मनाई, दादावाड़ी का जीर्णोद्धार हुआ। अनेक मन्दिर, उपाश्रयों के जीर्णोद्धारादि का उपदेश देते हुए दवीयर पधार कर प्रतिष्ठा कराई। घोलवड़ में जैन बोर्डिंग स्थापित करवाया। सं० १९९१ का चातुर्मास बम्बइ में किया। पंन्यास केशरमुनि जी ठाणा ३ महावीर स्वामी में व श्री ऋद्धिमुनि जी ने कच्छी वीसा ओसवालों के आग्रह से मांडवी में चातुर्मास किया। वर्द्धमान तप आयंबिल खाता खुलवाया। सं० १९९२ में लालवाड़ी में चातुर्मास हुआ। भाद्रपद दो होने से खरतरगच्छ व अंचलगच्छ के पर्युषण साथ हुए। दूसरे भाद्रपद में गुलाबमुनि ने दादर में व पंन्यास ऋद्धिमुनि जी ने लालवाड़ी में तपागच्छीय पर्युषण पर्वाराधन कराये। पंन्यास केशरमुनि का कार्तिक सुदि ६ को स्वर्गवास होने पर पायधुनी पधारे। जयपुर निवासी नथमल को दीक्षा देकर बुद्धिमुनि जी का शिष्य नंदनमुनि बनाया। सं० १९९३ का चातुर्मास दादर हुआ। ठाणा नगर पधार कर संघ में व्याप्त कुसंप को दूर कर बारह वर्ष से रुके हुए मन्दिर के काम को चालू करवाया। सं० १९९४ मिती वैशाख सुदि ६ का प्रतिष्ठा मुहूर्त निकला। वैशाख वदि १३ से अठाई महोत्सवादि आरम्भ होकर इस कलापूर्ण श्रीपालचरित्र के शिल्पचित्रों से सुशोभित मन्दिर की प्रतिष्ठा बड़े ठाठ से कराई। वैशाख सुदि १२ को बम्बई के उपनगरों में विचरण कर माटुंगा में रवजी सोजपाल के देहरासर में प्रतिमा की प्रतिष्ठा करायी। मलाड में सेठ बालूभाई के देहरासर में प्रतिमाजी विराजमान की। ठाणा संघ के आग्रह से वहीं सं० १९९४ का चातुर्मास किया। दादा साहब की जयन्ती व पूजा बड़े ठाठ से हुई। वर्द्धमान आयंबिल तप खाता खोला गया। स्वधर्मीवात्सल्य में कच्छी, गुजराती, मारवाड़ी भाईयों का सहभोज नहीं होता था, वह प्रारम्भ हुआ। (३८६) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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