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६. प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री
समता, समन्वय और उदारता का अद्भुत उदाहरण प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री का जन्म वि०सं० १९६५ वैशाखी पूर्णिमा को जयपुर में लूणिया परिवार में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री गुलाबचंद जी लूणिया था जो तत्कालीन युग के प्रमुख जौहरी थे। आपकी माता का नाम मेहताब बाई था। आपके माता-पिता तेरापन्थी समाज के अग्रगण्य श्रावक थे। माता-पिता ने इन का विवाह जयपुर राज्य के दीवान नथमल जी गोलेछा के पुत्र कल्याणमल जी से कर दिया। आपका ससुराल पक्ष स्थानकवासी समुदाय का अनुगामी था। आपका ध्यान सांसारिक कृत्यों में न होकर अध्यात्म की ओर ही बना रहता था। आपकी धर्मसाधना को देखते हुए आपके परिवार ने आपको दीक्षा लेने की अनुमति प्रदान कर दी। वि०सं० १९९९ आषाढ़ सुदि २ को जयपुर में उपाध्याय मणिसागर जी ने आपको दीक्षा देकर प्रवर्तिनी ज्ञानश्री की शिष्या घोषित किया और आप सज्जनकुमारी से साध्वी सज्जनश्री बन गयीं। वि०सं० २००० में लोहावट में श्री जिनहरिसागरसूरि से बड़ी दीक्षा प्राप्त की। अपने लम्बे जीवनकाल में आपने राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार और बंगाल के विविध स्थानों की यात्रा करते हुए धर्मप्रभावना की। अपनी धर्मयात्रा में आपने प्रवचन, लेखन, तप, स्वाध्याय आदि को अविरत रूप से जारी रखा। आप द्वारा लिखित और अनूदित विभिन्न ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं।
वि०सं० २०३२ में जोधपुर में आचार्य जिनकांतिसागरसूरि ने आपको प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठापित किया। सन् १९६९ वि०सं० २०४६ में जयपुर संघ ने अखिल भारतीय स्तर पर आपका अभिनन्दन कर आपको श्रमणी नामक अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया। ई०सन् १९९२ दिसम्बर की नौ तारीख को जयपुर में आपका निधन हो गया। स्थानीय मोहनबाड़ी में आपका दाह संस्कार कर वहाँ आपकी स्मृति में एक भव्य स्मारक का निर्माण कराया गया। आपश्री ने श्रुतसाधना की जो ज्योति प्रज्ज्वलित की है उसे आपका साध्वी मंडल निरन्तर प्रचारित व प्रसारित करता हुआ जिनशासन के गौरव में अभिवृद्धि कर रहा है।
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संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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