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((३) प्रवर्तिनी श्री प्रेमश्री
इनका जन्म वि०सं० १९३८ को शरत् पूर्णिमा के दिन फलौदी में हुआ। छाजेड़ गोत्रीय किशनलाल जी एवं श्रीमती लाभू देवी आपके माता-पिता थे। आपका जन्मनाम धूलीबाई था। १३ वर्ष की अल्पावस्था में आईदान जी गोलेछा के साथ आपका विवाह हुआ था। एक वर्ष के अन्दर ही आप वैधव्य को प्राप्त हो गयीं। १६ वर्ष की आयु में वि०सं० १९५४ मिगसर वदी १० को फलौदी में आपकी दीक्षा हुई और सिंहश्री जी की शिष्या बन कर प्रेमश्री नाम प्राप्त किया। प्रवर्तिनी देवश्री जी म० के स्वर्गवास के पश्चात् वि०सं० २०१० भाद्रपद सुदि १५ को प्रवर्तिनी पद आपको प्रदान किया गया, किन्तु इसी वर्ष आश्विन वदि १३ को आपका स्वर्गवास हो गया। आपका जीवन संयम, ध्यान-मौन निष्ठामय था। आपकी यशश्री, अनुभवश्री, तेजश्री आदि २५ विदुषी शिष्याएँ थीं। आपकी प्रशिष्याओं में अनुभवश्रीजी की शिष्या विनोदश्री, हेमप्रभाश्री तथा साध्वी तेजश्रीजी की शिष्या सुलोचनाश्री आदि विद्यमान हैं । इनका परिचय इस प्रकार है :(क) श्री अनुभवश्री-इनका जन्म वि०सं० १९५९, भादवा वदि ८ के दिन शाजापुर में हुआ था। इनके माता-पिता का नाम सोनादेवी, जमुनादासजी मांडावत था। जन्म नाम गुलाबकुमारी था। प्रवर्तिनी श्री प्रेमश्रीजी महाराज के प्रवचनों से प्रभावित होकर सम्वत् १९७९ को दीक्षा ग्रहण कर अनुभव श्री बनी थीं। आप संस्कृत, प्राकृत की विदुषी, आगम-मर्मज्ञा एवं प्रखर व्याख्यात्री थीं। जंघाबल क्षीण होने के कारण २६ वर्ष तक पाली में स्थानापन्न होकर शासन की सेवा करती रहीं। वि०सं० २०४३ फाल्गुन वदि ३ को समाधिपूर्वक आपका स्वर्गवास हुआ। वर्तमान में आपकी छः शिष्या एवं ११ प्रशिष्याएँ हैं। (ख) श्री विनोदश्री-इनका जन्म वि०सं० १९८७ कार्तिक शुक्ला १ को भोपाल में हुआ था। इनके पिता भाण्डावत गोत्रीय गेंदमल जी थे और माता का नाम लहरबाई था। आपका जन्मनाम यशवन्त कुमारी था। वि०सं० २००० आषाढ़ वदि १३ को फलौदी में आपकी दीक्षा हुई और अनुभवी जी की शिष्या बनकर विनोदश्री नाम प्राप्त किया। व्याकरण, न्याय, जैन साहित्य आदि पर आपका अच्छा अधिकार है। श्री हेमप्रभाश्री आपकी आज्ञानुवर्तिनी हैं। (ग) श्री हेमप्रभाश्री-इनका जन्म २००१ श्रावण शुक्ला १० को उज्जैन में हुआ। आपका जन्मनाम इन्दिरा था। भाण्डावत गोत्रीय गेंदामल आपके पिता और चन्द्रा देवी माता थीं। वि०सं० २०१२ वैशाख सुदि ७ को पाली में इनकी दीक्षा हुई और अनुभवश्री जी की शिष्या बनकर हेमप्रभाश्री नाम प्राप्त किया। आपने दर्शनशास्त्र में एम०ए० कर साहित्य, दर्शन, ज्योतिष और जैनागम साहित्य पर अच्छा अधिकार प्राप्त किया। आप प्रखर व्याख्यात्री हैं। 'प्रवचनसारोद्धार टीका सह' नामक कठिन ग्रन्थ का आपने हिन्दी में अनुवाद किया है जो प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर से २ भागों में प्रकाशित हो चुका है। आपकी कई अन्य पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। आप प्रभावशालिनी और मधुर भाषिणी हैं। आपकी शिष्य मंडली में १५-१६ साध्वियाँ हैं। आप उनके साथ हैदराबाद में विराजमान हैं। आपश्री ने प्रेरणा देकर अनेक दादावाड़ियों का निर्माण कराया है। गत वर्ष आपकी एक साध्वी ने पीएच०डी० की उपाधि प्राप्त की है। (घ) श्री सुलोचनाश्री-वि०सं० २००५ वैशाख वदि ३ को फलौदी में इनका जन्म हुआ था। हुड़िया वैद श्री गुमानमल जी इनके पिता और माता लाड़ देवी थीं। स्व० श्री गुमानमल जी ने अपने जीवनकाल में ५०० से अधिक अठाइयाँ की थीं। आप तपस्वीरत्न थे। वि०सं० २०१८ में
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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