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दीक्षा नाम बुद्धिमुनि प्राप्त किया। आपका नाम सार्थक प्रमाणित हुआ और थोड़े वर्षों में ज्ञान और चारित्र की अद्भुत आराधना कर एक अच्छे विद्वान् हो गए। - आचार्य श्री जिनयश:सूरि और अपने गुरुवर्य श्री केशरमुनि के साथ आप सम्मेतशिखर की यात्रा कर वीर प्रभु के निर्वाण तीर्थ पावापुरी पधारे। चातुर्मास वहीं हुआ और ५३ उपवास करके वहाँ आचार्यश्री का स्वर्गवास हो गया। तदनन्तर गुरु महाराज के साथ अनेक स्थानों में विचरते हुए सूरत पधारे। गुरुश्री अस्वस्थ हो गए। बम्बई चातुर्मास में कार्तिक सुदि ६ को पूज्य केशरमुनि का स्वर्गवास हो गया। आप २० वर्ष तक गुरुश्री की सेवा में रहकर तप-संयम साधना में रत रहे। आभ्यंतरतप रूप वैयावृत्य में आपकी बड़ी रुचि थी। गुरु श्री के भ्राता पूर्णमुनि के शरीर में भयंकर फोड़ा हो जाने से उसके मवाद में कीड़े और दुर्गन्ध इतनी असह्य हो गई कि कोई निकट बैठ ही नहीं पाता था। आपने छः मास पर्यन्त अपने हाथों से मरहम-पट्टी आदि करके उन्हें स्वस्थ किया।
__ आगमों के अध्ययन हेतु आपने सम्पूर्ण आगमों का योगोद्वहन किया। तत्पश्चात् सं० १९९५ में सिद्धक्षेत्र पालीताणा में आचार्यदेव श्री जिनरत्नसूरि ने आपको गणि पद से विभूषित किया।
मारवाड़, गुजरात, कच्छ, सौराष्ट्र और पूर्व प्रदेश तक आप निरन्तर विचरते रहे। कच्छ व मारवाड़ में तो आपने कई सुन्दर प्रतिमाओं और पादुकाओं की प्रतिष्ठा करवाई। श्री जिनरत्नसूरि की आज्ञा से भुज में दादा जिनदत्तसूरि मूर्ति व अन्य पादुकाओं की प्रतिष्ठा बड़े समारोह पूर्वक कराई। वहाँ से चूड़ाग्राम में आकर जिनप्रतिमा, नूतन दादावाड़ी और श्री जिनदत्तसूरि जी की मूर्ति-प्रतिष्ठा करवाई। चूड़ा चातुर्मास के समय श्री जिनरत्नसूरि के स्वर्गवास के समाचार मिले। आचार्यश्री की अन्तिम आज्ञानुसार आपने श्री जिनऋद्धिसूरि के शिष्य गुलाबमुनि जी की सेवा के लिए बम्बई की ओर विहार किया और उनको अन्तिम समय तक अपने साथ रखा, बड़ी सेवा की। उनके साथ गिरनार, सिद्धाचल आदि तीर्थों की यात्रा की। इसी बीच उपाध्याय श्री लब्धिमुनि के दर्शनार्थ आप कच्छ पधारे। वहाँ मंजल ग्राम में नये मन्दिर और दादावाड़ी की प्रतिष्ठा उपाध्याय जी के सान्निध्य में कराई। इसी प्रकार अंजार के शान्तिनाथ जिनालय के ध्वजादण्ड एवं गुरु-मूर्ति आदि की प्रतिष्ठा करवाई। वहाँ से विचरते हुए आप पालीताणा पधारे। अशाता वेदनीय के उदय से अस्वस्थ रहने लगे, फिर भी ज्ञान और संयम की आराधना में आप निरन्तर लगे रहते थे।
कदम्बगिरि के संघ में सम्मिलित होकर सौभागमल जी मेहता को आपने संघपति की माला पहनाई। तदनन्तर उपाध्याय जी की आज्ञानुसार अस्वस्थ होते हुए भी भुज-कच्छ पधार कर वहाँ के संभवनाथ जिनालय की अंजनशलाका और प्रतिष्ठा उपाध्याय लब्धिमुनि के सान्निध्य में करवाई। फिर पालीताणा पधार कर सिद्धगिरि पर स्थित दादाजी के जीर्णोद्धारित देहरियों में चरण-पादुकाओं की प्रतिष्ठा व श्री जिनदत्तसूरि सेवा संघ के अधिवेशन में सम्मिलित हुए। श्री गुलाबमुनि काफी अस्वस्थ थे, उनकी सेवा में आपने कोई कसर नहीं रखी, पर आयुष्य समाप्ति का अवसर आ चुका था। अतः सं० २०१७ वैशाख सुदि १० महावीर स्वामी के केवलज्ञान कल्याणक के दिन श्री गुलाबमुनि स्वर्गस्थ हो गए।
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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