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(गणि श्री महिमाप्रभसागर
बीकानेर निवासी श्री मोहनलाल जी आपके पिता एवं वरजी देवी माता थीं। आपका जन्म वि०सं० १९८२ में बीकानेर में हुआ था। आपका गृहस्थावस्था का नाम मिलापचन्द्र था। आपकी मातुश्री वरजी देवी ने वि०सं० २००० में बीकानेर में श्री जिनमणिसागरसूरि जी म० की अध्यक्षता में उपधान तप कराया था। वि०सं० २०३५ ज्येष्ठ सुदि ११ को बाड़मेर में श्री विमलसागर जी के समीप अपनी पत्नी और पुत्र के साथ आपने दीक्षा ग्रहण की थी। इनका दीक्षानाम महिमाप्रभसागर रखा गया। पत्नी जेठीबाई का जितयशाश्री और लघु पुत्र ललित का नाम ललितप्रभसागर रखा गया था। वि०सं० २०३६ पौष सुदि ७ को नाकोड़ा तीर्थ में श्री जिनकांतिसागरसूरि के वरदहस्तों से इन्होंने बड़ी दीक्षा ग्रहण की और श्री जिनकांतिसागरसूरि के शिष्य घोषित किये गये।
ललितकुमार के बड़े भाई पुखराज ने वि०सं० २०३६ माघ सुदि ११ को दीक्षा ग्रहण कर चन्द्रप्रभसागर नाम प्राप्त किया।
बन्धुयुगल ललितप्रभसागर और चन्द्रप्रभसागर न केवल विद्वान् और लेखक ही हैं बल्कि असाधारण प्रवचनपटु भी हैं। अब तक आपके प्रवचनों के शताधिक संग्रह पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हो चुके हैं।
वर्तमान में योग साधना की ओर ये अधिक आकर्षित हैं और इस सम्बन्ध में कई शिविर भी आयोजित कर चुके हैं। गणि श्री महिमाप्रभसागर जी के सान्निध्य एवं बन्धुयुगल के सत्प्रयत्नों से सम्मेतशिखर तीर्थ में जैन संग्रहालय एवं जोधपुर में सम्बोधि धाम का भी निर्माण हुआ है।
विक्रम संवत् २०४६ वैशाख सुदि १३ के दिन सूरत में आचार्य श्री चिदानन्दसूरि जी महाराज के कर-कमलों से इनको गणि पद प्रदान किया गया।
गणि श्री पूर्णानन्दसागर धमतरी निवासी बंगानी गोत्रीय श्री जमनालाल जी और श्रीमती कस्तूरी देवी के यहाँ इन्होंने जन्म लिया। इनका जन्म नाम चम्पालाल था। विक्रम संवत् २०३० पौष वदि तीज को नयापारा (राजिम) में इन्होंने आचार्य श्री जिनउदयसागर जी महाराज के कर-कमलों से दीक्षा ली और उनके शिष्य बने। इनका दीक्षा नाम पूर्णानन्दसागर रखा गया। श्री जिनमहोदयसागरसूरि जी ने इनको गणि पद प्रदान किया।
श्री मनोज्ञसागर
स्व० श्री कांतिसागरसूरि के शिष्यों में श्री मनोज्ञसागर जी भी हैं। वि०सं० २०१९ माघ वदि ५ को इनका जन्म हुआ। इनका बचपन का नाम मिश्रीमल था। इनके पिता प्रतापमल जी और माता
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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