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३. महान् प्रतापी श्री मोहनलाल जी का समुदाय
श्री जिनसुखसूरि जी की परम्परा में खरतरगच्छ विभूषण महान् प्रतापी श्री मोहनलाल जी क्रियोद्धारक और सर्व गच्छ समभावी महापुरुष हुए हैं जिनका साधु समुदाय खरतर तथा तपागच्छ की शोभा बढ़ा रहे हैं। आपने सं० १९३० में क्रियोद्धार किया था । इतः पूर्व वे कलकत्ता के आदेशी यति थे। आपकी गुरु परम्परा का सम्पूर्ण परिचय यहाँ दिया जाता है
१. कर्मचंद जी - इनका दीक्षा नाम कीर्तिवर्द्धन था । सं० १७८७ मिगसिर सुदि १२ को उदरामसर में श्री जिनसुखसूरि ने दीक्षित किया।
२. वृद्धिचंद जी - इनका दीक्षा नाम इलाधर्म था । इन्हें सं० १८०४ फाल्गुन सुदि १ को श्री जिनलाभसूरि भुज नगर में दीक्षा दी।
३. बुद्धिचंद जी - इनका दीक्षा नाम विनीतसुन्दर था । सं० १८१३ माघ वदि ८ को बीकानेर में श्री जिनलाभसूरि ने दीक्षित किया ।
४. लालचंद जी - इनका दीक्षा नाम लक्ष्मीमेरु था । सं० १८४३ फाल्गुन सुदि ११ को श्री जिनचन्द्रसूरि इन्हें बीकानेर में दीक्षित किया।
५. सालगौ जी - इनको सं० १८५१ वैशाख सुदि ३ को रोहिणी गाँव में श्री जिनचन्द्रसूरि ने दीक्षा देकर सुमतिवर्द्धन नाम से प्रसिद्ध किया ।
६. अमरा जी - इनका दीक्षा नाम अमृतसागर था । सं० १८६३ पौष वदि ३ को श्री जिनहर्षसूरि द्वारा जालौर में दीक्षा हुई।
७. रूपचंद जी - सं० १८८० फाल्गुन वदि ८ को बीकानेर में श्री जिनहर्षसूरि ने दीक्षित कर ऋद्धिशेखर नाम से प्रसिद्ध किया ।
८. श्री मोहनलाल जी महाराज - आपकी दीक्षा सं० १९०० ज्येष्ठ सुदि १३ को नागौर में हुई । यतिवर्य ऋद्धिशेखर (रूपचंद जी) के शिष्य मानोदय नाम से प्रसिद्ध हुए । श्री जिनमहेन्द्रसूरि के कर-कमलों से मक्षी जी में इनकी दीक्षा होने का जीवन चरित्र में वर्णन है ।
१.
मोहनलाल जी महाराज
आपका जन्म सं० १८८७ वैशाख सुदि ६ को मथुरा के निकटवर्ती चन्द्रपुर ग्राम में सनाढ्य ब्राह्मण बादरमल जी की धर्मपत्नी सुन्दर बाई की कोख से हुआ । जन्म नाम मोहनलाल था । सं० १८९४ में इन्हें माता-पिता ने नागौर आकर यतिवर्य रूपचंद जी को समर्पित कर दिया । यति जी के पास इनका विद्याभ्यास हुआ। आप लखनऊ और कलकत्ता भी रहे । सं० १९३० में कलकत्ता से अजमेर पधार कर क्रियोद्धार कर कठिन साध्वाचार पालन करते हुए विचरने लगे। एक बार एकाकी
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संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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