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हुआ। वहाँ से विहार कर सातलपुर, राधनपुर, सूरत, खंभात, राजनगर, पाटण आदि गुजरात में विचर कर मारवाड़ से समीयाणा पधारे। राणा श्री देवकरण स्वागतार्थ सामने आये। हरियड़ गोत्रीय सेठ थिराद्रिया बन्ना गुणराज ने नगर प्रवेशोत्सव कराया। श्री शान्तिनाथ जिनालय में वंदन कर उपाश्रय में चातुर्मास रहे और श्री जयरत्नसूरि को आचार्य पद दिया। बत्रा गुणराज ने महोत्सव किया। श्री जयरत्नसूरि को देश संभलाकर जोधपुर, तिमरी, सातलमेरु के संघ को वंदा कर जैसलमेर पधारे। कालू वंश शृंगार मं० सीहा के पुत्र समधर, समरसिंह ने प्रवेशोत्सव किया। राउल श्री जयतसीह वंदनार्थ आये और बड़ी धर्म प्रभावना हुई। चातुर्मास में खूब धर्मध्यान हुए। गणधरवसही के ऋषभदेव जिनालय में कायोत्सर्गी भरत प्रतिमा, जो मं० सीहा सुत समधर ने निर्माण कराई थी, प्रतिष्ठित की। श्री महिममन्दिर को अपने पट्ट पर स्थापित किया, श्री जिनमेरुसूरि नाम प्रसिद्ध किया। सं० १५५९ मिती पौष वदि १० को गाजीपुर में स्वर्गवासी हुए।
इनके द्वारा वि०सं० १५२६ में प्रतिष्ठापित भरत चक्रवर्ती की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है। यह आज आदिनाथ जिनालय, जैसलमेर में है। (नाहर-जैन लेख संग्रह, भाग-२ लेखांक २४०१।)
(५. आचार्य श्री जिनमेरुसूरि
श्री जिनचन्द्रसूरि के पट्ट पर आप अभिषिक्त हुए। आपका आचार्य काल सं० १५५९ से सं० १५८२ है। छाजहड़ गोत्रीय समरथ साह की धर्मपत्नी मूलादेवी की कोख से आपका जन्म हुआ, दीक्षा नाम महिमामन्दिर था। सं० १५५९ आषाढ़ शुक्ल ९ रविवार को सोमदत्त पुत्र मं० चापा कृत महोत्सव में जयरत्नसूरि ने आपको सूरिमंत्र दिया और पौष वदि १० को आप पाट पर विराजे जिसका महोत्सव झूठिल कुलोत्पन्न समधर, सम, सीहा मंत्री ने किया। आप स्वयं भी झूठिल कुलोत्पन्न थे। तदनन्तर आप विहार कर सातलमेर, जोधपुर, घंघाणी, खीमसर, मेड़ता, नागौर, बीकानेर के संघ को वंदाते हुए सोजत, जैतारण, धूनाड़ा आदि कड़ा, सीवाणची, महेवची, जालौरी, साचौरी के संघ को वंदा कर सीवाणा पधारे। श्रीसंघ ने बड़े धूमधाम से प्रवेशोत्सव कर चातुर्मास कराया। श्री जयसिंहसूरि को आपने आचार्य पद दिया। इसी प्रकार भावशेखर, देवकल्लोल, देवसुन्दर, क्षमासुन्दर को उपाध्याय पद तथा ज्ञानसुन्दर, क्षमामूर्ति, ज्ञानसमुद्र को वाचक पद दिया। ___वहाँ से विहार कर राजद्रही, कुंभाछत, कांपली, सूराचंद, थिराद वंदाते हुए धाणधार, राधनपुर, सातलपुर, भुज, नागला, हाला, सोरठ वंदाकर अणहिल्लपुर पाटण पधारे। संघवी पूना आदि ने प्रवेशोत्सव कराया। चातुर्मास में खूब धर्म ध्यान हुआ।
जैसलमेर संघ की वीनती आई कि आचार्य जयानन्दसूरि का स्वर्गवास हो जाने से गच्छ में अस्त-व्यस्तता आने लगी है। सूरि जी सांचौर, राड़द्रहा, छवटण, भोपा, बाहड़मेर, कोटड़ा होते हुए आसणीकोट पधारे, जहाँ जैसलमेरी संघ सन्मुख आया। मं० समरसीह ने महोत्सवपूर्वक नगर प्रवेश कराके चातुर्मास कराया। पर्वाधिराज पर्युषण की चैत्य प्रवाड़ी पर पंच शब्द-वाजिन बजने को लेकर
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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