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फलौदी चातुर्मास कर संस्कृत-प्राकृत भाषा और आगम प्रकरणादि का प्रौढ़ ज्ञान प्राप्त किया। संवत् १९७४ में गणाधीश त्रैलोक्यसागर जी का स्वर्गवास हो जाने पर आप गणाधीश बने।
आप इतिहास और साहित्य के प्रेमी सरल स्वभावी विद्वान् थे। आपके समय में समुदाय में साधु-साध्वियों की पर्याप्त वृद्धि हुई। चालीस वर्ष के गणाधीश काल में आपने देश के प्रायः सभी भागों में विहार किया, तीर्थयात्राएँ की, प्रतिष्ठा, उद्यापन, संघ यात्रा, साहित्योद्धार आदि प्रशंसनीय कार्य किए। शत्रुजय पर नई खरतरवसही का पाटिया हटा देने पर आपने प्रयत्न करके आनंद जी कल्याण जी की पेढ़ी द्वारा वापस लगवाया। प्राचीन शिलालेख, प्राचीन ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ एवं ग्रन्थ प्रशस्तियाँ आपने संग्रहीत की। ज्ञान भण्डार, पाठशाला आदि अनेक संस्थाएँ स्थापित की। इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है:प्रतिष्ठाएँ :-श्री पनाचंद जी सिंघी द्वारा सुजानगढ़ में निर्मापित कलापूर्ण जिनालय, केलू (जोधपुर) का ऋषभदेव जी का पंचायती मन्दिर, मोहनवाड़ी (जयपुर) में दुलीचंद जी हमीरमल जी गोलेछा द्वारा पार्श्वनाथ स्वामी, सिरहमल जी संचेती द्वारा निर्मापित नवपद पट्ट, कोटा में दीवान बहादुर सेठ केशरीसिंह जी कारित तथा हाथरस में मोहकमचंद जी बोहरा के दादावाड़ियों की, लोहावट के गुरु मन्दिर में गणनायक श्री सुखसागर जी, भगवानसागर जी व छगनसागर जी के मूर्ति-चरणों की स्थापना की। उद्यापन :-अपने सान्निध्य में अनेक भाग्यशालियों के तपश्चर्यादि के उद्यापन करवाए। फलौदी में रतनलाल जी गोलेछा का नवपद जी का, कोटा के दीवान बहादुर सेठ केशरीसिंह जी का पौष दशमी का, जयपुर के गोकुलचंद जी पुगलिया, हमीरमल जी गोलेछा, सागरमल जी सिरहमल जी संचेती, विजयचंद जी पालेचा आदि के नवपद जी, ज्ञानपंचमी, वीस स्थानक जी के, तिवरी में श्रीमती सेठीबाई के ज्ञानपंचमी का, देहली के केशरीचंद जी बोहरा के ज्ञानपंचमी, नवपद जी के उद्यापन आदि विशेष उल्लेखनीय हुए। संघ यात्रा :-आपश्री के उपदेश से कई भव्यात्माओं ने तीर्थयात्रा के हेतु छःरी पालित संघ निकाले। फलौदी से पहली बार जैसलमेर के लिए सेठ सहसमल गोलछा व दूसरी बार सुगनमल जी गोलेछा की धर्मपत्नी श्रीमती राधाबाई द्वारा, बारेजा पार्श्वनाथ तीर्थ के लिए मांगरोल से पहली बार सेठ जमनादास मोरार जी द्वारा व दूसरी बार सेठ मान जी कान जी द्वारा, अंजारा पार्श्वनाथ तीर्थ के लिए वेरावल से खरतरगच्छ पंचायत द्वारा, तालध्वज महातीर्थ के लिए पालीताना से आहोर निवासी सेठ चन्दनमल छोगाजी द्वारा, श्री सिद्धाचल जी के लिए अहमदाबाद से सेठ डाह्या भाई द्वारा, देहली से हस्तिनापुर महातीर्थ के लिए लाला चाँदमल जी घेवरिया की धर्मपत्नी श्रीमती कपूरी बाई द्वारा तथा और भी कई संघ निकले। संस्थाओं की स्थापना :-आपके उपदेश से पालीताना में जिनदत्तसूरि ब्रह्मचर्याश्रम, जामनगर में श्री खरतरगच्छ ज्ञानमन्दिर जैन शाला, लोहावट में जैन मित्र मंडल, श्री हरिसागर जैन पुस्तकालय, कलकत्ता
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
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