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आपके ही प्रयत्नों से मेड़ता रोड़ में फलोधी पार्श्वनाथ विद्यालय की स्थापना हुई। सं० २००६ मिगसर सुदि १० के दिन श्री जिनहरिसागरसूरि जी ने आपको उपाध्याय पद प्रदान किया।
श्री जिनानंदसागरसूरि जी के स्वर्गवास के अनन्तर अहमदाबाद में खरतरगच्छ संघ द्वारा सं० २०१७ चैत्र वदि ७ के दिन आपको आचार्य पद से विभूषित किया गया। परन्तु दुर्भाग्यवश आप पूरे एक वर्ष भी आचार्य पद द्वारा शासनसेवा न कर पाए कि कराल काल ने निर्दयता पूर्वक छीन लिया। आप अहमदाबाद से विहार कर २० दिन में मन्दसौर के पास प्रतिष्ठा व योगोद्वहनादि हेतु बूटा गाँव पधारे थे। वहाँ फाल्गुन शुक्ला ५ शनिवार को रात्रि में १२ बजे हृदयगति रुक जाने से नवकार मंत्र का ध्यान करते हुए आप स्वर्गवासी हुए।
(१४) गणाधीश श्री हेमेन्द्रसागर
वृद्ध पुरुषों से सुना था कि इन्होंने बाल्यावस्था में जयपुर स्थित यति श्यामलाल जी (सुमतिपद्म) के पास यति दीक्षा ग्रहण की थी। श्री जिनहरिसागरसूरि जी महाराज के निकट संपर्क में आने पर ये उनके शिष्य बने और नाम हेमेन्द्रसागर प्राप्त किया। विक्रम संवत् २०१८ फाल्गुन सुदि पंचमी को तत्कालीन आचार्य श्री जिनकवीन्द्रसागरसूरि जी का अकस्मात् स्वर्गवास हो जाने पर इनको गणाधीश पद प्रदान किया गया। शारीरिक अस्वस्थता और नेत्र ज्योति क्षीण होने के कारण इन्होंने सूरत में कई वर्षों तक स्थिरवास किया और वहीं विक्रम संवत् २०३४ में आपका स्वर्गवास हो गया।
((१५) आचार्य श्री जिन उदयसागरसूरि
गणाधीश श्री हेमेन्द्रसागर जी का भी सूरत में स्वर्गवास हो जाने के पश्चात् समाज में यह अभाव विशेष रूप से खलने लगा कि गच्छ में कोई आचार्य ही नहीं है। फलतः अखिल भारतीय जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ महासंघ ने निर्णय लिया कि अब आचार्य पद रिक्त न रखकर दोनों ही मुनिगणों को आचार्य बना दिया जाय। फलतः सन् १९८२ में जयपुर में आचार्य पद महोत्सव हुआ
और संघ ने एक साथ दो आचार्य बनाये-जिनउदयसागरसूरि एवं जिनकान्तिसागरसूरि। आप दोनों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है :
जिनउदयसागरसूरि जी का गृहस्थावस्था का नाम था देवराज भंडारी। इनके माता-पिता का नाम था श्री सुल्तानकरण जी भंडारी एवं श्रीमती जतन देवी। इनका जन्म १९६० फाल्गुन वदि अमावस्या को सोजत में हुआ था। विक्रम संवत् १९८८ माघ सुदि पंचमी को बीकानेर में २८ वर्ष की अवस्था में ही वीरपुत्र आनन्दसागर जी (जिनआनन्दसागरसूरि) के पास दीक्षा ग्रहण कर उनके शिष्य बने। दीक्षा नाम मुनि उदयसागर रखा गया था। १३ जून १९८२, वि०सं० २०३८ आषाढ़ वदि ६ को जयपुर नगर में श्रीसंघ ने आपको आचार्य पद से विभूषित किया। तभी से आप जिनउदयसागरसूरि
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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