________________
(५. आचार्य श्री जिनहर्षसूरि )
आप बोहरा गोत्रीय थे। सं० १५१७ आषाढ़ वदि १० बुधवार के दिन श्रीपत्तन में बहुरा गोत्रीय सा० धरणा, सा० जगिया, सा० नयण कृत नन्दि महोत्सव द्वारा श्री विवेकरत्नसूरि जी ने आचार्य पद दिया। इनके द्वारा बड़ी संख्या में प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें प्राप्त हैं। वि०सं० १५३७ में रचित आरामशोभाकथा इन्हीं की रचना है।
(६. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरि )
आपका जन्म भारीआ गोत्र में हुआ था। सं० १५४४ वैशाख वदि १२ बुधवार के दिन खंभात में सं० माणिक और सं० माला कारित नंदि महोत्सवपूर्वक श्री जिनहर्षसूरि जी ने स्वयं आपको पट्ट पर स्थापित किया। वि०सं० १५६७ और १५७७ के तीन प्रतिमा लेखों में प्रतिमा प्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है। जिनचन्द्रसूरि के प्रशिष्य एवं विवेकसिंह गणि के शिष्य धर्मसमुद्र गणि द्वारा रचित सुमित्रकुमाररास, प्रभाकरगुणाकरचौपाई, कुलध्वजकुमाररास आदि विभिन्न कृतियाँ मिलती हैं। आरामशोभाकथा के कर्ता मलयहंस भी जिनचन्द्रसूरि के ही शिष्य थे।
(७. आचार्य श्री जिनशीलसूरि)
आप संखवाल गोत्रीय थे। सं० १५८९२ ज्येष्ठ सुदि प्रतिपदा को श्रीपतन में संघ कृत नन्दि महोत्सव द्वारा श्री जिनचन्द्रसूरि जी ने आपको सूरि मंत्र दिया।
८. आचार्य श्री जिनकीर्तिसूरि)
आप नाहटा गोत्रीय थे। सं० १५९६३ में बाफणा गोत्रीय सं० कडुआ कारित नन्दि महोत्सवपूर्वक अहमदाबाद नगर में श्री जिनशीलसूरि जी ने आपको आचार्य पद प्रदान किया।
(९. आचार्य श्री जिनसिंहसूरि )
आप नवलखा गोत्रीय थे। वि०सं० १६०९ माघ वदि ३ को अहमदाबाद के शाह सोनपाल १. अन्य पट्टावलियों में सुदि २. अन्य पट्टावलियों में १५३० वैशाख वदि लिखा है जो अयथार्थ है। ३. अन्य पट्टावलियों में सं० १५९४ लिखा है। ४. अन्य पट्टावली में सं० १६०७ है।
(२८४)
खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org