________________
आचार्य श्री जिनप्रबोधसूरि
७१. चातुर्मास समाप्त होने पर श्री जिनरत्नाचार्य जी श्री जिनेश्वरसूरि जी की आज्ञानुसार श्री जिनप्रबोधसूरि जी की पद-स्थापना खूब ठाठ से करने की इच्छा से जावालीपुर आ गए। श्रावकों की ओर से आमंत्रण पत्रिका पाकर चारों दिशाओं से अनेक नगरोपनगरों के लोग आकर जुट गये। श्री चन्द्रतिलकोपाध्याय, श्री लक्ष्मीतिलकोपाध्याय, वाचनाचार्य पद्मगणि आदि मुख्य-मुख्य अनेक साधु लोग भी आये। प्रतिदिन अनाथ दुखियों को दान दिया जाने लगा। खान-पान-मिष्ठान्नादि सुख साधनों से आगन्तुक चतुर्विध संघ का आदर-सत्कार होने लगा। लोगों के मनमयूर को आनन्दित करने के लिए मेघाडम्बर के समान नाना प्रकार के नाच-कूद खेल किये जा रहे थे। उसी समय सं० १३३१ फाल्गुन वदि अष्टमी रवि के दिन गच्छ के नियन्ता, व्यवहार पटु, वयोवृद्ध श्री जिनरत्नाचार्य जी ने श्री जिनप्रबोधसूरि जी की पदस्थापना की। इसके बाद फाल्गुन सुदि पंचमी के दिन स्थिरकीर्ति', भुवनकीति दो मुनियों और केवलप्रभा', हर्षप्रभा, जयप्रभा, यशःप्रभा नामक चार साध्वियों को जिनप्रबोधसूरि जी ने दीक्षा दी।
सं० १३३२ ज्येष्ठ वदि प्रतिपदा शुक्रवार के दिन श्री जावालीपुर में सभी देशों से आये हुए श्रीसंघ के मेले में श्रावक-शिरोमणि सेठ श्री क्षेमसिंह ने नमि-विनमि से परिवृत श्री ऋषभदेव, श्री महावीर स्वामी, अवलोकनशिखर, श्री नेमिनाथ, शाम्ब-प्रद्युम्न, श्री जिनेश्वरसूरि जी, धनद यक्ष इन सब की मूर्तियाँ और सुवर्णगिरि स्थित श्री चन्द्रप्रभ स्वामी के चैत्य पर वैजयन्ती (ध्वजा) की प्रतिष्ठा करवाई। इसी अवसर पर दिल्ली निवासी दलिकहरु श्रावक ने श्री नेमिनाथ स्वामी की, सेठ हरिचन्द्र श्रावक ने शान्तिनाथ भगवान् की एवं और भी अनेक जिन मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई। ज्येष्ठ वदि ६ को सुवर्णगिरि में श्री चन्द्रप्रभ स्वामी के मन्दिर पर ध्वजा का आरोपण किया गया। ज्येष्ठ वदि नवमी के दिन श्री जिनेश्वरसूरि के स्तूप में उनकी मूर्ति स्थापित की गई। उसी दिन विमलप्रभ मुनि को उपाध्याय पद, राजतिलक को वाचनाचार्य का पद प्रदान किया गया। ज्येष्ठ सुदि तृतीया के दिन गच्छकीर्ति, चारित्रकीर्ति, क्षेमकीर्ति नामक मुनियों को और लब्धिमाला, पुष्पमाला नामक साध्वियों को दीक्षित किया गया।
७२. सं० १३३३ माघ वदि १३ को जावालिपुर में कुशलश्री गणिनी को प्रवर्तिनी पद दिया गया। इसी वर्ष सेठ विमलचन्द्र के पुत्र सेठ क्षेमसिंह और सेठ चाहड़ के द्वारा बनाये हुए कार्यक्रम के अनुसार और इन्हीं दोनों श्रावकों द्वारा मार्ग-प्रबन्ध करने पर सेठ क्षेमसिंह, सा० चाहड़, हेमचन्द्र, हरिपाल, दिल्ली निवासी जेणू सेठ के पुत्र पूर्णपाल, सोनी धांधल के पुत्र भीमसिंह, मंत्री देदा के पुत्र मंत्री महणसिंह आदि सब दिशाओं में आकर इकट्ठे हुए विधिसंघ ने, शत्रुजय आदि महातीर्थों की
१. ये दोनों भाई-बहन जिनपतिसूरि जी के गृहस्थ चाचा निबोध के वंशज लालण-आंबश्री के पुत्र-पुत्री थे, पुत्र
कुमारपाल था। (जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह पृ० ८९)
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
(१३९)
www.jainelibrary.org