________________
श्री जिनमाणिक्यसूरि जी के स्वहस्त दीक्षित शिष्यों की संख्या विशाल है। ग्रन्थ प्रशस्तियों एवं अन्य अन्त:साक्ष्यों के आधार पर कतिपय नाम प्राप्त होते हैं, वे निम्न हैं :१. युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि, २. भुवनधीर, ३. अनन्तहंस, ४. उपाध्याय विनयसमुद्र, ५. कवि कनक, ६. वाचनाचार्य विनयसोम, ७. वाचनाचार्य कल्याणधीर, ८. देवतिलक, ९. वाचनाचार्य कल्याणतिलक, १०. वादी विजयराज, ११. सुमतिकलश, १२. नयविलास, १३. भुवनसोम, १४. हीरोदय आदि।
इसमें क्रमाङ्क ४ उपाध्याय विनयसमुद्र के दो शिष्य हुए-हर्षशील और गुणरत्न। हर्षशील की परम्परा में क्रमशः ज्ञानसमुद्र, ज्ञानराज, लब्धोदय आदि हुए और गुणरत्न की शिष्य परम्परा में क्रमशः रत्नविलास, त्रिभुवनसेन, मतिहंस एवं महिमोदय हुए।
क्रमाङ्क ७ कल्याणधीर के तीन शिष्य हुए-कमलकीर्ति, कुशलधीर और कनकविमल। कमलकीति के शिष्य चारित्रलाभ, चारित्रलाभ के सुमतिलाभ, सुमतिलाभ के सुमतिमंदिर, सुमतिमंदिर के जयनंदन तथा जयनंदन के शिष्य लब्धिसागर हुए।
कल्याणधीर के दूसरे शिष्य कुशलधीर के शिष्य धर्मसागर हुए।
कल्याणधीर के तीसरे शिष्य कनकविमल की शिष्य परम्परा के बारे में कोई विवरण उपलब्ध नहीं है।
卐
(२२२)
खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org