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हुआ। दानराज के शिष्य हीरकीर्ति हुए। इनके दो शिष्यों- राजहर्ष और मतिहर्ष का उल्लेख मिलता है। राजहर्ष के शिष्य राजलाभ हुए। राजलाभ के दो शिष्यों-राजसुन्दर और क्षमाधीर का उल्लेख मिलता है।
हीरकीर्ति के दूसरे शिष्य मतिहर्ष के दो शिष्यों-भुवनलाभ और महिमामाणिक्य का उल्लेख मिलता है। भुवनलाभ के शिष्य तेजसुन्दर हुए। भुवनलाभ के गुरुभ्राता महिमामाणिक्य के तीन शिष्य हुए-महिमसुन्दर, मुक्तिसुन्दर और श्रीचन्द्र।
क्रमाङ्क ८ नयनकमल के शिष्य जयमंदिर हुए।
क्रमाङ्क ९ समयराजोपाध्याय के शिष्य अभयसुन्दर हुए। अभयसुन्दर के शिष्य कमललाभोपाध्याय और कमललाभोपाध्याय के शिष्य लब्धिकीर्ति हुए। इनके शिष्य राजहंस हुए। राजहंस के शिष्य देवविजय और देवविजय के शिष्य चरणकुमार हुए।
क्रमाङ्क १० धर्मनिधानोपाध्याय के तीन शिष्य हुए-सुमतिसुन्दर, धर्मकीर्ति और समयकीर्ति. धर्मकीर्ति के चार शिष्यों- दानसार, विद्यासार, महिमसार और राजसार का उल्लेख मिलता है। धर्मनिधानोपाध्याय के तीसरे शिष्य समयकीर्ति के एक शिष्य श्रीसोम का उल्लेख मिलता है।
क्रमाङ्क ११ रत्ननिधानोपाध्याय के शिष्य रत्नसुन्दर हुए। क्रमाङ्क १४ सुमतिकल्लोल के शिष्य विद्यासागर का उल्लेख मिलता है।
क्रमाङ्क १६ वाचक पुण्यप्रधान की शिष्य सन्तति का आचार्य शाखा में स्वतंत्र रूप से परिचय दिया गया है।
क्रमाङ्क १७ सुमतिशेखर के पाँच शिष्यों-ज्ञानहर्ष, चारित्रविजय, महिमाकुशल, रत्नविमल और महिमाविमल का उल्लेख मिलता है। इनमें से ज्ञानहर्ष के शिष्य खेतसी हुए। अन्य मुनिजनों की शिष्य परम्परा के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है।
क्रमाङ्क १९ भुवनमेरु के शिष्य पुण्यरत्न हुए। इनके शिष्य का नाम दयाकुशल था। दयाकुशल के शिष्य धर्ममंदिर हुए।
क्रमाङ्क २० लालकलश के शिष्य ज्ञानसागर हुए और ज्ञानसागर के शिष्य हुए कमलहर्ष।
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड For Private & Personal Use Only
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