________________
वीराबाव में ज्येष्ठ वदि ३ को ८ दीक्षाएँ दीं। वहाँ से सं० १८१९ में उदय नंदी स्थापित कर गुढ़ा में २, डभाल में २ व कारोला में ७ दीक्षाएँ दीं।
मिती ज्येष्ठ वदि ५ को ७५ साधुओं के साथ श्री गौड़ी पार्श्वनाथ तीर्थ की पारकर (सिन्ध) में यात्रा करके सं० १८२० का चातुर्मास गुढ़े में किया। इस वर्ष हेम नंदी में राजद्रहा में माघ सुदि ५ को ७, चैत्र सुदि १ को २, चैत्र सुदि ५ को २, तलवाड़ा में जेठ वदि ८ को ३, पंचपदरा में जेठ सुदि २ को ६ और माघ सुदि ३ को बालोतरा में ३ कुल २३ दीक्षाएँ हुईं।
श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ की यात्रा करके सं० १८२१ का चातुर्मास जसोल में किया। माघ सुदि ८ को सार नंदी स्थापित कर पादरु में १२ और रोहीठ में ५ दीक्षाएँ दीं।
सं० १८२१ फाल्गुन शुक्ला प्रतिपदा को पच्चासी मुनियों के साथ श्री आबूतीर्थ की यात्रा की। तदनन्तर आप घाणेराव, सादड़ी नाम के दो शहरों में चोपड़ा वखतसाह आदि द्वारा किये गये महोत्सव में पधारे। वहाँ विघ्न करने को आये हुए विरोधियों को बुद्धिबल से पराजित करके जय के बाजे बजवाये। उस देश में राणपुरादि पाँच तीर्थों की यात्रा की।
खेजड़ला, खारिया, रोहीठ, मण्डोवर, जोधपुर, तिमरी होते हुए मेड़ता पधारे। सं० १८२२ में प्रिय नंदी में फाल्गुन वदि ११ में मण्डोवर में ८ और वैशाख सुदि ५ बुधवार को मेड़ता में ९ और जेठ सुदि ५ गुरु को २ दीक्षाएँ दीं।
सं० १८२३ का चातुर्मास मेड़ता में कर मिगसर वदि ७ को कीर्ति नंदी में ४ दीक्षाएँ देकर जयपुर पधारे। चैत्र वदि ८ को ५ दीक्षाएँ हुईं और सं० १८२४ पौष वदि ३ को ३ दीक्षाएँ हुईं।
सं० १८२४ में जयपुर में प्रभ नंदी में पौष वदि ६ को ५ दीक्षाएँ देकर रूपनगरादि होकर मेवाड़ पधारे। उदयपुर में वैशाख सुदि ३ को ४ दीक्षाएँ देकर वहाँ से १८ कोश ऋषभदेव केशरियानाथ की यात्रा ८८ मुनियों के साथ वैशाख सुदि १५ को की। संघ की गाढ़ विनती से "पालीवाले" पाट विराजे अर्थात् चातुर्मास किया।
__ सं० १८२५ मिगसर वदि १२ द्वितीया को पाली में ही प्रभ नंदी में २, माघ सुदि १० को गूढ़ा ग्राम में २ और माघ सुदि १२ को ४ दीक्षाएँ देकर रायपुर पधारे और माघ सुदि १५ को २ दीक्षाएँ दीं। सं० १८२५ फाल्गुण वदि १३ सोमवार को छिपीया में मूर्ति नंदी में २, वैशाख वदि ३ को धूनाड़ा में १, वैशाख वदि १० को दहीपुड़ा में २ दीक्षाएँ देकर सांचौर पधारे। माघ वदि ५ को ३ दीक्षाएँ दीं।
सूरत के धनाढ्य संघ की अवसरोचित वीनती पत्र प्राप्त कर सूरत की ओर विहार किया। राधनपुर आदि नगरों में विचरते हुए श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की यात्रा करके सेठ गुलाबचंद, भाईदास आदि श्रीसंघ के आग्रह से सं० १८२६ वैशाख सुदि ५ को सूरत पधारे। मार्ग में पादरा में ११ दिन रहे। सं० १८२७ वैशाख सुदि ३ को सूरत में राजमूर्ति की दीक्षा हुई। मिती वैशाख सुदि द्वादशी को
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
(२४३)
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org