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के प्रधान-प्रधान श्रावकों ने मूल मन्दिर और अपने मन्दिर में होड़ा-होड़ से अनेक पूजायें पढ़वाई। मन्दिरों पर नाना प्रकार के रेशमी आदि विभिन्न वस्त्रमय ध्वजा एवं ध्वज दण्ड का आरोपण किया। सुवर्ण, अन्न, वस्त्र के दान से याचक वर्ग को सन्तुष्ट किया। इस श्रीसंघ के दिल्ली से प्रस्थान करने समय से अब तक, सेठ रयपति के किये जाने वाले विविध वस्तुओं के दान से कल्पवृक्ष को भी लज्जित होना पड़ा है। इस अवसर पर उच्चापुरी निवासी रोहड़ (? रीहड़ गो०) हेमल के पुत्ररत्न सा० कडुया श्रावक ने जिनशासन प्रभावक अपने भतीजे हरिपाल के साथ दो हजार छः सौ चौहत्तर रुपयों में इन्द्र पद प्राप्त किया और सेठ धीणाजी के पुत्ररत्न सा० गोसल ने छ: सौ रुपयों में मंत्री पद ग्रहण किया। प्रतिष्ठा, उद्यापन, इन्द्र पद महोत्सव, कलश-मण्डनादि द्वारा ऋषभदेव भगवान् के भण्डार में पचास हजार रुपयों का संग्रह हुआ।
९६. इसके बाद पूज्यवर श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज सारे संघ के साथ पुनः पहाड़ की तलहटी पर संघ के उतारे में आ गए। यद्यपि वर्षा ऋतु निकट आ गई थी, ऊबड़-खाबड़ मार्ग में लुटेरों का भय था। काठियावाड़ की जमीन पथरीली थी, तथापि वहाँ से लौटते समय मार्ग में वर्षा आदि से किसी प्रकार की विघ्न-बाधा उपस्थित नहीं हुई थी। यह मेघकुमार देव की कृपा का प्रभाव है। संघ के प्रधान सेठ रयपति जी का प्रभाव भी बड़ी मदद पहुँचा रहा था, उनके प्रभाव में आकर उपद्रवकारी अनेक म्लेच्छ मार्ग में अनुगामी और आज्ञाकारी बन गए थे। चतुर्विध-संघ रूपी सेना से परिवृत हुए धर्म-चक्रवर्ती पूज्य श्री जिनकुशलसूरि जी महाराज पाटण आदि नगरों के राजमार्गों की तरह उस मार्ग में चलते हुए सुख पूर्वक सौराष्ट्र देश के अलंकारभूत खंगारगढ़ (जूनागढ़) आ पहुँचे। वहाँ पर सरकारी, गैर सरकारी सभी लोगों ने सम्मुख आकर संघ सहित पूज्यश्री का सम्मान किया और गिरनार पहाड़ की तलहटी में संघ का डेरा लगवाया।
वहाँ पर खंगार (जूनागढ़) में स्वपक्षीय-परपक्षीय लोगों के चित्त में चमत्कार उत्पन्न करने वाली चैत्य-परिपाटी को संघ के साथ बड़े ठाठ से विधि-पूर्वक सम्पन्न करके पूज्यश्री ने आषाढ की चातुर्मासी के दिन आबाल-ब्रह्मचारी राज्य एवं राजिमती का परित्याग करने वाले, श्री उज्जयन्ताचल महातीर्थ के अंलकारभूत श्री नेमिनाथ स्वामी को अपने नये बनाये हुए स्तुति-स्तोत्रों से नमस्कार किया। संघ के अध्यक्ष सेठ रयपति आदि प्रमुख श्रावकों ने शत्रुजय तीर्थ की तरह यहाँ भी सुवर्ण की मुहरों और स्वर्ण टंकों से नवांगी पूजा की। उसी दिन मांगलउर (मांगरोल) का रहने वाला, उदार चरित्र, प्रभावशाली सेठ जगतसिंह का पुत्ररत्न सेठ जयता श्रावक अनेक अभिग्रह लेकर वन्दना करने को वहाँ आया था। उसने खंगारगढ़ निवासी, महा सम्पत्तिशाली रीहड़ झांझण ने तथा रीहड़ रत्नचन्द्र के पुत्र मोखदेव आदि श्रावक-श्राविकाओं ने सम्यक्त्व-धारण सामायिका-रोपण, परिग्रह-परिमाण आदि हेतु नन्दि महोत्सव किया। सेठ रयपति आदि संघ के प्रमुख सभी श्रावकों ने शत्रुजय महातीर्थ की तरह यहाँ भी चार दिन तक बड़े भक्ति भाव से महा पूजा, महाध्वजा रोपणादि महोत्सव किए। हमीरपुर के रहने वाले जिनशासन के प्रभावक सेठ धीणा जी के पुत्ररत्न सेठ गोसल श्रावक ने २४७४ रुपये भेंट चढाकर इन्द्र पद ग्रहण किया और शासन प्रभावक सेठ काला श्रावक के पुत्ररत्न सेठ बीजा
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खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड
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