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कोतव्याकरता पञ्चमो घजप्रत्ययादिपादः
घञ् प्रत्यय, उपलक्षण, पदधातु का अपञ्चार्ध पाठ, कृ-भू-अस्' सामान्य क्रिया अर्थ के अभिधायक, धात्वर्थ भाव, साध्य-सिट भेद से दो प्रकार की क्रिया, भाव का अर्थ सत्ता, द्रव्यादि भेद से कारक पाँच प्रकार का, कारक के द्रव्य और शक्ति अर्थ, कारकों की व्यवस्था विवक्षाधीन, बाह्यआभ्यन्तरभेद से भाष, दो प्रकार का, कुलचन्द्र-वैद्य आदि के मत, गरीयसी प्रतिपत्ति, विवरणलाव, छन्द शब्द से अनुष्टुप् आदि का ग्रहण, पाठान्तरचर्चा, कात्यायन की सम्मति, छान्दस प्रयोग, उपलक्षण, पदसंस्कार, वैचित्र्यार्थ आदिग्रहण, शिष्टप्रयोग, 'इनुण्' प्रत्यय, उच्चारणार्थ इकारानुबन्ध, णच् प्रत्यय, वैचित्र्यार्थ पाठ, क्रिया-व्यतीहार, भट्टिवचन, अल् प्रत्यय। योगविभागार्थ चकार, निपातनविधि, 'हु' आदेश, वध-घन् आदेश, घञ् प्रत्यय, निपातनविधि, 'ड' प्रत्यय, सभी गत्यर्थक धातुएँ ज्ञानार्थक, 'क' प्रत्यय, ‘अत्' प्रत्यय, अर्थ-त्रिमक् प्रत्यय, कर्मविवक्षा, सोपसर्ग अकर्मक धातु का सकर्मक होना, 'नङ्-कि-क्ति' प्रत्यय, क्रियाभिधायी धातु, प्रकृतिप्रत्यय मिलकर प्रत्ययार्थ को कहते हैं, क्यप्-श-य प्रत्यय, सूत्रकार का मत, अ-अङ् प्रत्यय, पूर्वाचार्यों द्वारा घटादि धातुओं का षानुबन्ध पाठ, अर्वाचीन-सम्प्रदायवित्, त्रिलोचन-दुर्ग-सागर-श्रीपति के अभिमत, गरीयसी प्रतिपत्ति, यु-वुञ्-इञ्-अनि-कृत्य-युट-क्त-घ-घञ् प्रत्यय, क्रीडा में नित्य समास, योगविभाग की अपेक्षा अक्षराधिक्य का औचित्य, आकृतिगण, चान्द्रसूत्र, निपातनविधि, भग के विविध अर्थ, खल् प्रत्यय, अभिधान से अभीष्ट अर्थ का ग्रहण, तुम्-तृच्-कृत्य-णिन्-तिक-कृत्संज्ञक प्रत्यय, विशेष्य रूप धात्वर्थ के काल में कृत्संज्ञक प्रत्ययों का साधुत्व, ऋजु आचार्यों का अभिमत, वक्ता के अधीन उच्चारण, कुलचन्द्र-वृत्तिकारपञ्जिकाकार आदि के मत, परमार्थतः अखण्ड वाक्य, संज्ञाशब्दों की
यथाकथञ्चित् व्युत्पत्ति]। षष्ठः क्त्वाप्रत्ययादिपादः ।
५२२-६५८ [क्त्वा प्रत्यय, कारण में कार्य का उपचार, सूत्र की विचित्र रचना, क्रियाप्रधान आख्यात, वक्तव्यपक्ष-संग्रहपक्ष, लोकप्रसिद्धि, पूर्वकाल-विवक्षा, पाठान्तर, कारकपदार्थ शकि, लिङ्गादिपाठ अतन्त्र, त्रिलोचनहृदय, णम्खमिञ् प्रत्यय, विषयसप्तमी, सूत्रकार-भाष्यकारमत, पाठान्तर, वाक्यसमाप्ति पर इति शब्द का प्रयोग, बालावबोधार्थ निर्देश, सिद्धान्तविशेष, लोकोपचार से प्रयोगों का परिज्ञान, वन्धविशेष की संज्ञा,