Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६ चुण्णिसुत्तणिबद्धा त्ति तदणुसारेणेव विवरणं कस्सामो । तं जहा
8 एदीए गाहाए वंधो च संकमो च सूचिदो होइ ।
$ ४. कुदो ? गाहापुव्वपच्छद्धेसु जहाकम दोण्हमेदेसिमत्थाणं णिबद्धत्तदंसणादो। एवमेदेण सुण गाहाए समुदायत्थो परूविदो। संपहि पदच्छेदमुहेणावयवत्थपरूवणं कुणमाणो उवरिमपबंधमाह
पदच्छेदो। ६५. सुगमं । * तं जहां।
६. सुगमं । * कदि पयडीओ बंधइ त्ति पयडिबंधो।
७. कदि पयडीओ बंधइ ति एदम्मि सुत्तपदे केत्तियाओ पयडीओ मोहणिजपडिबद्धाओ बंधइ, किमेकमाहो दोण्णि तिणि वा इच्चादिपुच्छामेत्तवावारेण सव्वो पयडिबंधो णिलीणो त्ति गहेयव्यो, एदस्स देसामासियभावेणावट्ठाणादो।
* हिदि-अणुभागे त्ति द्विदिबंधो अणुभागबंधो च । विशेष खुलासा चूर्णिसूत्रोंमें किया है, इसलिए चूर्णिसूत्रोंके अनुसार ही यहाँ व्याख्यान करते हैं । यथा____ * इस गाथा द्वारा बन्ध और संक्रम ये दो अधिकार सूचित किये गये हैं।
६४. क्यों कि गाथाके पूर्वाध और उत्तरार्धमें क्रमसे निबद्धरूपसे ये दो ही अधिकार
इस प्रकार इस सूत्रद्वारा गाथाके समुदायार्थका कथन किया। अब पदच्छेदद्वारा प्रत्येक पदके अर्थका कथन करते हुए आगेके प्रबन्धका निर्देश करते हैं
* अब पदच्छेद करते हैं। $ ५. यह सूत्र सुगम है। * यथा६६. यह सूत्र भी सुगम है। * 'कदि पयडीयो बंधदि' इस पदसे प्रकृतिबन्धको सूचित किया गया है।
७. गाथा सूत्रके 'कदि पयडीयो बंधदि' इस पदमें मोहनीयकी कितनी प्रकृतियोंको बाँधता है, क्या एक प्रकृतिको बाँधता है अयवा दो या तीन प्रकृतियोंको बाँधता है इत्यादि पृच्छाविषयक व्यापार द्वारा पूरा प्रकृतिबन्ध अन्तर्भूत है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि यह पद देशामर्षकभावसे अवस्थित है।
* 'ट्ठिदि-अणुभागे' इस पदसे स्थितिबन्ध और अनुभागबन्धको सूचित किया गया है।
देखे जाते हैं।
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