Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२ ]
हिदिविहत्तीए अणिोगद्दाराणि तत्थ अणियोगद्दाराणि ।
६ तत्थ मूलपयडिहिदिविहत्तीए अणियोगद्दाराणि वत्तव्वाणि अण्णहा परूवणाणुववत्तीदो । किमणिओगद्दारं णाम ? अहियारो भण्णमाणत्थस्स अवगमोवाओ ।
* सव्वविहत्ती पोसव्वविहत्ती उक्कस्सविहत्ती अणुक्कस्सविहत्ती जहएणविहत्ती अजहण्णविहत्ती सादियविहत्ती प्रणादियविहत्ती धुवविहत्ती अधुवविहत्ती एयजीवेण सामित्तं कालो अंतरं गाणाजीवेहि भंगस्थितियोंके भेदकी अपेक्षा स्थितिभेद क्यों नही हो सकता है अर्थात् हो सकता है क्योंकि एक प्रकृतिमें अपने स्थितिविशेषकी अपेक्षा भेद मानते हुए उत्तर प्रकृतियोंकी स्थितियोंमें अपने स्थिति भेदकी अपेक्षा और अपनेसे भिन्न अन्य प्रकृतियोंकी स्थितियोंके भेदकी अपेक्षा यदि स्थिति भेद न माना जाय तो विरोध आता है।
विशेषार्थ प्रश्न यह है कि एक स्थितिको स्थितिविभक्ति पदके द्वारा कैसे सम्बोधित कर सकते हैं, क्योंकि जो स्थिति स्वरूपतः एक है उसमें भेदकी कल्पना नहीं की जा सकती है। इसका कई प्रकारसे समाधान किया है। प्रथम तो यह बतलाया है कि स्थिति एक हो कर भी उसमें प्रकृति और प्रदेशोंकी अपेक्षा भेद सम्भव है, इसलिए एक स्थितिको भी स्थितिविभक्ति कहा है। फिर भी यह समाधान स्थितिकी मुख्यतासे नहीं हुआ इसलिए अन्य प्रकारसे इस प्रश्नका समाधान किया गया है । इसमें बतलाया है कि कर्म आठ हैं और उनमेंसे यहां मोहनीयकी मूलप्रकृतिस्थिति विवक्षित है। यतः वह अन्य ज्ञानावरणादिकी मूलप्रकृतिस्थितिसे भिन्न है इसलिए यहां मूलप्रकृतिस्थितिके साथ विभक्ति पद जोड़ा गया है । इस प्रकार यह शंकाका उत्तर तो हो जाता है पर इससे एक स्थितिका स्वरूपगत भेद समझमें नहीं आता । इसलिए आगे इसे प्रकट करनेके लिए चौथे प्रकारसे समाधान किया गया है। इसमें बतलाया है कि जब मूलप्रकृतिस्थितिमें उत्कृष्ट आदि भेद सम्भव हैं तब उसके साथ विभक्ति पर जोड़नेमें क्या बाधा है। इस प्रकार एक स्थिति स्थितिविभक्ति है और अनेक स्थिति स्थितिविभक्ति है यह सिद्ध होता है।
ॐ अब मूलप्रकृतिस्थितिविभक्तिके विषयमें अनुयोगद्वार कहते हैं ।
६६. मूलप्रकृतिस्थितिविभक्तिके विषयमें अनुयोगद्वार कहना चाहिये, अन्यथा उसकी प्ररूपणा नहीं हो सकती है।
शंका-अनुयोगद्वार किसे कहते हैं ?
समाधान-कहे जानेवाले अर्थके जाननेके उपायभूत अधिकारको अनुयोगद्वार कहते हैं।
* यथा-सर्वविभक्ति, नोसर्वविभक्ति, उत्कृष्टविभक्ति, अनुत्कृष्टविभक्ति, जघन्यविभक्ति, अजघन्यविभक्ति, सादिविभक्ति, अनादिविभक्ति, ध्रु वविभक्ति, अध्रु वविभक्ति, एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, काल, और अन्तर तथा नाना जीवों
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